कहानीसंस्मरण
#शीर्षक
अतीत के गलियारे से...
" गणतंत्र दिवस के रंग-बिरंगे अनुभव "
साथियों देश पुनः स्वतंत्रता दिवस मना रहा है ... चारो तरफ उत्साह और ओज पूर्ण माहौल है। इस शुभदिन पर .मैं अपने अनुभव शेयर कर रही हूँ मित्रों ...
मेरे पूज्यनीय पिताजी जो महान् स्वतंत्रता सेनानी थे। वे विश्वविधालय के उच्च प्राध्यापक पद पर से रिटायर हुए थे।
यह सन् ४० की बात है। उन दिनों वे दरभंगा में स्कूल शिक्षक के पद पर कार्य रत रहते थे।
सन् १९४२ के " अंग्रेजों भारत छोड़ो "
एवं जेल भरो अभियान के तहत उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ कर जेल चले गए थे ।
ठीक इसके विपरीत हमारी माताजी स्वतंत्रता पूर्व के थानेदार की बिटिया तो लिहाजा हमारा घर दो विपरीत विचारधाराओं का संगम हुआ करता था।
माताजी का भरसक प्रयास रहता , घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने का।
पिताजी को प्रसन्न रखने के लिए वे काफी दिनों तक चरखा कतली भी बुनती रही थीं।
और हम सब भाई बहनों को भी ऐसा करने हेतु प्रेरित करती रहती जिसमें बेटे तो कट लेते पर हम बहने ना कट पाती थीं ।
इसी प्रोग्राम के तहत २६ जनवरी के दिन अहले सुबह पांच बजे हम सब भाई बहनों को उठ कर स्नान करा घर ही के बागीचे को फूल पत्ते से सजा ,
आंटे से चौक पूर कर के घर में ही सिले झंडे को पिताजी शान से फहराया करते ।
हम सब सात भाई -बहनों की फौज उन्हें बारी - बारी से सलामी देते ।
इसके बाद पिताजी हरमोनियम बजाते , जिसमें हम सब सुर मिलाते। राष्ट्र गान गाते जिसकी प्रैक्टिस दो दिन पहले से की जा रही होती... "वन्दे मातरम् सुजलाम् सुफलाम् शस्य श्यामलम् "।
तदुपरांत बारी आती। माताजी के हांथों से बने लड्डू के चूर्ण वाले प्रसाद का वितरण का । जो उन्हीं के कर कमलों से होता ।
इस तरह हर साल हम हंसी -खुशी से स्वतंत्रता पर्व सेलिब्रेट करते।
सीमा वर्मा / सुखद अनुभूति
पटना ( बिहार )