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साहसी कदम - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

साहसी कदम

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साहसी कदम
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आज अवनी आई बहुत खुश लग रही थी । आकर मेरे से लिपट गयी । मैने कहा कैसी हो बेटा वह हंस कर बोली आपके सामने खड़ी हूँ ना । मै बीते दिनो में पहुंच गयी एक प्यारी सी मनमोहक छवि की मालकिन अवनी मेरी सबसे अधिक करीबी थी । मेरे ही पड़ोस में मि. शर्मा रहते हैं। उनकी ही तीन बेटो में सबसे छोटी अवनि थी । वह पढाई के साथ साथ कुछ अलग से भी सीखना चाहती थी । जबकि आजकल लड़कियां सिलाई ,कढ़ाई ,बुनाई आदि में कोई सीखना नहीं चाहती । मुझे इन चीजों का बहुत शौक था । मै भी कालिज से आकर फ्री रहती थी । बच्चे दोनों बाहर थे । पति अपने कामों में व्यस्त । जब भी समय मिलता अवनी मेरे पास आजाती थी । मै भी उसको कुछ ना कुछ सिखाती रहती थी ।
अवनी अब 21 साल की हो गयी थी । शर्मा जी और उनकी पत्नी दोनों को ही उसकी शादी की चिन्ता थी । लगातार प्रयास करने पर शहर में ही एक अच्छा परिवार मिल गया । अच्छा व्यापार था दीक्षित साहब का उनके तीन बेटे थे । दो बेटों की शादी हो गयी थी । तीसरे बेटे प्रतुल के लिये वह भी अच्छी लड़की चाह रहे थे । जब शर्मा जी अवनि का सम्बन्ध प्रतुल के लिये लेकर गये और बातें आगे बढी तब अवनी को देखने का प्रोग्राम बना । एक ही नजर में अवनी सबको पसंद आगयी । मै भी बहुत खुश थी पर कहीं थोड़ी उदासी भी थी कि अब उसका चहकना सुनाई नहीं देगा पर बस वह खुश रहे यही इच्छा थी और वह दिन भी आगया अवनी दुल्हन बन कर ससुराल चली गयी । जब भी वह आती मिलकर जाती बहुत खुश थी । धीरे धीरे एक साल बीत गया ।
एक दिन सुबह ही शर्मा जी के यहाँ रोने की आवाजें आने लगी ‌। मै और मेरे पतिदेव दोनों उनके यहाँ पहुँचे पता लगा प्रतुल ने रात को कोई जहरीली दवा खाकर आत्महत्या कर ली । मै तो एकदम से जड़ होगयी कि ये कैसे हुआ अवनी को कौन संभाल रहा होगा । पूरा परिवार अवनी के यहाँ चला गया । मै पूरे दिन परेशान रही । जब शर्मा परिवार लौट कर आया मैने पूछा ऐसा कैसे हुआ तब पता लगा कि प्रतुल ने किसी को 10 लाख रु . उधार दिये वह लौटा नहीं रहा था उसी बात पर भाईयों ने कुछ अधिक ही कठोर शब्द बोल दिये बस उसी तनाव में उसने अपने को खत्म ही कर लिया ।
धीरे धीरे समय बीत रहा था पहली बार प्रतुल के बिना अवनी आई । मैं उससे मिलने गयी लिपट कर बहुत रोई मै केवल उसकी पीठ सहलाती रही ‌। कुछ दिन बाद पता चला अवनी की सास ने घोषणा करदी कि शादी के बाद वह मेरी बेटी बन कर आई थी । अब मै उसकी माँ हूँ और मै उसकी शादी करूगी और उसका कन्या दान भी क्योंकि मेरे कोई बेटी नहीं है। सब परिवार वाले विरोध में थे पर वह अपनी बात पर अडिग थी । उन्होंने बोल इसकी इतनी लम्बी जिन्दगी को समाज की मान्यताओं पर बलि नहीं चढ़ाऊंगी । मुझे लकीर का फकीर नहीं बनना । मैं इस लकीर को मिटाऊंगी और उन्होंने अपने भतीजे आलोक से ही उसकी शादी करा दी क्योंकि उनके भाई का बहुत पहले देहान्त हो गया था । विधवा भाभी इस दर्द को समझती थी उन्होंने तुरन्त अपनी ननद की बात मान ली । आज दूसरी शादी के बाद अवनी पहली बार आई थी । मेरा रोम रोम उसे आशीर्वाद दे रहा था हे ईश्वर इस बच्ची की मुस्कराहट ऐसे ही खिलती रहे । दाद देनी पड़ेगी अवनी की सास को जिन्होंने समाज को साहसी कदम उठा कर आईना दिखाया ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत मार्मिक.. किन्तु एक अच्छा सन्देश.!

दादी की परी
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