कहानीसामाजिकप्रेरणादायक
शीर्षक :"एक अधूरा सपना"
(भाग 1)
"आत्म प्रतिभा निखारने के लिए आदमी बचपन से ही संघर्ष करता है, तब जा कर वो इस काबिल होता है कि अपनी और अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा सके.!!"
ऐसे शब्द यदा-कदा विनय के कानों में गूंजते रहते..
अपने पिता के ये शब्द वो एक कान से सुन कर दूसरे से निकल देता था.!
पांच साल से वो यही सुनता आ रहा था!
आज फिर पिताजी ने विनय के प्रति अपना गुस्सा, उसके छोटे भाई संजू पर उड़ेल दिया!
संजू ने पापा से कॉलेज में अपने दोस्तों को, अपने जन्मदिन की पार्टी देने के लिए कुछ पैसे माँगे थे!
चाय का प्याला मेज़ पर रखते हुए पिताजी फिर शुरू हो गये
"मेरे पास क्या नोटों का पेड़ लगा है..? जो जब चाहे तोड़ कर तुम्हें दे दु.! तुम्हारे भाई की पढ़ाई के लिये पैसे उधार लिए थे, जिसे आज तक चुका रहा हूँ...
सोचा था ये कुछ बन जायेगा, तो मेरा कुछ बोझ हल्का हो जाएगा मगर.....
"मगर ये खुद बोझ बन गया.!!"
विनय की आवाज़ सुन कर पापा ने नज़र उठा कर देखा, विनय शांत भाव से खड़ा था!
मगर पिताजी का खून ख़ौल रहा था इससे पहले की पिताजी और विनय में आज फिर कोई विवाद होता... माँ ने संजू को 800 रुपये देते हुये कहा
"संजू मेरे पास ये ही है और हाँ .. तुम्हें इस महीने तुम्हारी पॉकेट मनी नही मिलेगी"
और माँ मुस्कुराने की कोशिश करती हुई आँखो में आये आँसू पोछने लगी माँ की यह हालत देख विनय दुःखी हो गया पर विनय अपने दुख पर काबु पाने की कोशिश करता हुआ घर से निकल गया.!
"अरे नाश्ता तो करता जा..!! पीछे से माँ ने पुकारा मगर विनय आज फिर बिना कुछ खाये घर से निकल गया!
विनय बिना सोचे समझे चला जा रहा था अचानक उसके कदम रुक गए, वो आकाश की ओर उड़ते पक्षियों को देख कर सोचने लगा ..
"काश मैं भी इन की तरह उड़ पाता मगर.....
वो निराश हो कर सामने पड़ी बेंच पर बैठ गया!
उसके आस- पास बहुत से बच्चे खेल रहे थे अक्सर विनय भी इन बच्चों के साथ खेला करता था मगर आज मन नही था!
"भैय्या आओ न खेलेगे"
एक बच्चे ने आ कर कहा विनय ने प्यार से उसके गाल छूते हुऐ कहा
"तुम लोग खेलो !
फिर कुछ सोचते हुए कहा
"तुम लोग स्कूल नही गये??
"अरे भैय्या आज हॉलिडे है
बच्चे ने बहुत ही उत्साह से कहा
"अरे हाँ ... मैं तो भूल ही गया था तुम जा कर खेलों!
विनय की बात सुन कर बच्चा अपनी बॉल उठा कर अपने दोस्तो के बीच जा कर खेलने लगा.!
विनय ने गहरी सांस लेते हुए आंखे बंद कर ली, और सोचने लगा पापा अचानक इतना क्यों बदल गये..??
"कितना प्यार करते थे.... मेरे सपनों को साकार करने के लिए दिन रात मेहनत की...
जब मैं इंटर में पूरे जिले मे प्रथम आया था, तो पापा कितने खुश थे उनकी खुशी का कोई ठिकाना नही था ,पापा ने हमेशा ये ही चाहा मैं उनके सपने साकार करू वो मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे क्योंकि वो अपने पिता यानी दादा जी का सपना पूरा नही कर पाए थे इसलिए अब वो मुझे डॉक्टर बना कर अपना और दादा जी के अधूरे सपने को पूर्णता देना चाहते थे ! इसलिए मुझे कुछ बताए बिना ही पापा ने कुछ पैसे उधार ले कर मेरा एडमिशन ज़िले के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज में करवा दिया
पापा मुझे शायद चौकना चाहते थे
अचानक से मेरे चेहरे पर ढेर सारी खुशी देखना चाहते थे!
उस दिन पापा ने मुस्कुराते हुए मुझे इस सच से अवगत कराया
"विनय मेरे बच्चे... अब तू मेरे सपनों को पंख लगा दे"!
"जी पापा " विनय ने पापा के पैर छूते हुए कहा
"मेरे बच्चे अब तू अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाने की आदत डाल लें"!
विनय ने चौक कर अपने पिता की ओर देखा "अरे देख क्या रहा है..
तेरा दाखिला मेडिकल कॉलेज में हो गया है ... एक दो दिन में क्लासिस शुरू हो जायेगी" पापा अपनी ख़ुशी जाहिर करते हुए एक सांस बोले जा रहे थे
"जा जाकर तैयारी शुरू कर"
विनय आवक खड़ा सोच रहा था कैसे बताये पिताजी को की वो डॉक्टर नही पायलट बनना चाहता है, वो एयर फोर्स जॉइन करना चाहता है मगर पिताजी की खुशी उनके सपनो के आगे विनय कि इच्छा उसकी अपनी खुशी छोटी लगी...
क्रमशः
©️पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना