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मैं तो तो अकेला ही चला था - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मैं तो तो अकेला ही चला था

  • 279
  • 8 Min Read

मैं अकेला ही चला था
मैं तो अकेला ही चला था
अनायास ही
बिन प्रयास ही
डग-मग पग-पग
जब-तब, ना जाने कब-कब
अकस्मात यूँ संग-संग
अहसासों के साये में ढल
पग-पग कारवाँ सा बन
लमहों का मेला भी चला था
यादों का रेला भी चला था
मैं तो अकेला ही चला था

जाने कितने मोड़ आये
जाने कितने साथ चले
पीछे कितने छोड़ आये
किस-किससे नाता जोड़ पाये
किस-किससे नाता तोड़ आये

कितना मेरे साथ चला
कितना मेरा साथ ढला
छला गया यूँ कौन मुझसे
किस-किसने मुझको छला
कितना पीछे छूट गया
ना जाने क्या टूट गया 
ना जाने क्या रूठ गया
ना जाने क्या लूट गया

लमहा-लमहा
तनहा-तनहा
हर वादी की खामोशी में
गूँजती आवाज सुनता
हर लमहे के दामन में
लिपटा-सिमटा आज चुनता
एक नया अंदाज चुनता
एक नया आगाज़ चुनता
पल-पल एक ख़्वाब बुनता

अहसासों के साये में
अनुभव के सरमाये में
कुछ भरमाते, कुछ भरमाये से
हर सवाल के पीछे लुकते-
छुपते चंद जवाब गुनता

जाने कब से संग संग
जिंदगी के रंग-ढंग
इस इंद्रधनुष में निखरते
क्षण-क्षण, कण-कण में बिखरते
एक-एक कर इसके सब रंग
हर रंग पर थिरकी उमंग
कुछ बिखरा, कुछ संग-संग
पल-पल कुछ बटोर लाया
और कभी तो कतरा-कतरा 
खुद को पीछे छोड़ आया

हाँ, जब भी कोई मोड़ आया
कुछ ना कुछ संग जोड़ लाया
हर कल के नाजुक धागे को
हर दम हर पल तोड़ आया
अगले कल और पिछले कल के
दो पाटों के बीच से
आज के लमहों के दाने
दामन में बटोर लाया

हाँ, जिंदगी के साथ चल 
पल पल इसके साँचे में ढल
खुद से खुद को जोड़ पाया
बाकी सब कुछ छोड़ आया

जिंदगी की डगर पे
जीवन के इस सफर में
लमहों की इस लुकाछुपी का
एक खेला भी चला था
मैं तो अकेला ही चला था
मैं तो अकेला ही चला था

द्वारा: सुधीर अधीर

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

Sunder Rachna ..!

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