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क्या कर रहे हो तुम? - Yasmeen 1877 (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

क्या कर रहे हो तुम?

  • 319
  • 5 Min Read

#28 अगस्त
दिन-शुक्रवार
चित्र आधारित
विधा-पद्य
ठहरो! ज़रा सोचो
क्या करने जा रहे हो?
इतने भी क्रूर मत बनो!
एक निर्दोष अबोध बालक
के साथ ये कैसा निर्मम्
व्यवहार कर रहे हो तुम?
अभी तो वह अपने सपनों
की दुनिया में मग्न है,
नहीं जानता छल -कपट ,
प्रतिद्वंदिता होती है क्या?
वह कोमल हृदय औरअबोध !
निष्कपट भाव से हर बात तुम्हारी
मानेगा तनिक प्यार से बोलो तो!
है अगर समय आज तुम्हारा
होगा वही पल कल इसका ।
इसके कांधों पर ही तो
टिका है भविष्य तुम्हारा ।
क्यों फिर तुम गलती दोहराते हो?
क़तर कर पंख उसके तुम
क्यों बंधन में रखना चाहते हो?
उड़ने से पहले ही यदि तुम
पंख उसके काटोगे
हो सकता है अपने ही
पैरों पर लाठी तुम मारोगे ।।
ठहरो! कुछ तो विचारो
सपनों के उसके यूँ न मारो!!
और यह कौन सहभागिनी
मूकदृष्टा बन निहार रही?
भीतर की ममता
क्यों नहीं जाग रही?
है कोई प्रलोभन या है
उसके भीतर भी भय तुम्हारा?
जाने कौन दिशा विहीन हो तुम!
अपनी कुनीति और प्रज्ञा हीनता
के वाहक बनकर ये क्या
अपराध करने जा रहे! .......
सस्वरचित/मौलिक
डॉ यास्मीन अली
हल्द्वानी नैनीताल ,उत्तराखंड ।

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

बहुत सुन्दर रचना..!

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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