कहानीलघुकथा
लघुकथा#शीर्षकः
"ऑनलाइन शॉपिंग "
" आखिर क्या करे वह अपने इस नामुराद दिल का?"।
यह क्यूं नहीं उतना रूखा हो पाता है? जितनी कि मेघा हो जाती है कभी-कभी उनके प्रति"।
यह सोच कर मालती हैरान है।
' मेघा ' मालती की बहू है। जिसे वह दिल की गहराईयों से प्यार करती हैं।
दूसरे किसी की जरा-जरा सी बात पर झट बुरा मान लेने वाली मालती मेघा की हर सही- गलत बात को झट स्वीकार कर हाँ में हामी भर देती है।
पति मनोहर बाबू के टोकने पर भी उन्हें यह कह कर मना लेती है कि,
" अब घर में चार बर्तन हैं तभी तो खट-पट होती है "।
खैर मनोहर बाबू , दिल पर पत्थर रख कर ही सही उसके धैर्य की दाद देने से नहीं चूकते।
लेकिन हर बात की एक हद होती है।
वही आज हो गई।
मेघा का जन्मदिन आनेवाला है।
उसकी खातिर गिफ्ट मंगाने की सोच वे पिछले दो दिनों से मेघा को कह रही हैं,
"मेघा तुम्हे जो भी मंगाना है वह मंगा ले बिटिया, अपने जन्मदिन का गिफ्ट"।
पर आज मेघा ने थोड़ी रूखाई से औनलाईन शौपिंग करते वक्त उनके सामने ही यह कहते हुए लैपटॉप बन्द कर दिया,
" आप मेरे लिए ही तो मंगा रही हैं मम्मी,
तो जब मेरी मर्जी,मेरी पसंद फिर मेरे समयानुसार क्यों नहीं?"
यों तो मेघा ने अपनी जानकारी की गर्मी दिखाते हुए यह बात हल्के-फुल्के ढ़ंग से ही कही थी। लेकिन मालती ने इसे अपने दिल पर ले लिया।
"अब यह भी क्या बात हुई वे भी तो आखिर पढ़ी-लिखी हैं?"।
"हां ये और बात है कि मेघा की तरह बाहर काम नहीं कर, घर पर ही रहने वाली सिम्पल गृहिणी हैं तो क्या?"
फिर मनोहर जी की तो मत कँहे।
वह तो मानों उनके बस इसी एक चोट खाने का इन्तज़ार कर रहे थे। लोहा गर्म है यह जान आनन-फानन में उन्होंने मोबाईल फोन खोल लिया और मालतीजी को सिखाने बैठ गए ऑनलाइन शौपिंग के सारे गुर। सारी तरकीब बता दी ।
मालती ने भी तत्क्षण बहू की बेरूखी को नजर अंदाज कर उसके जन्मदिन के लिऐ अपनी पसंद के सुन्दर कपड़े और उसके मैचिंग के ऐसे्सेरीज और्डर भी कर दिए ,
यह सोच कर कि जब ,
"उपहार तुम्हारा! मेरी तरफ से तो पसंद भी, मेरी मर्जी से और मेरे समयानुसार "☺️☺️।
स्वरचित /सीमा वर्मा