कहानीसामाजिकहास्य व्यंग्य
आज वत सावित्री थी, शशि जल का लौटा भरकर मंदिर को निकल गयी। रस्ते में सुमन मौसी मिल गयी।
“कैसी हो शशि”
पैर छूते हुए “बढ़िया मौसी आप कैसी हो”?
“मैं भी ठीक हूँ, तू तो दिखती ही ना है, कहाँ रहवे है?”
“मौसी बस घर के काम और क्या उसी से फुर्सत नही मिलती”
मौसी शशि के हाथ मे पकड़े लौटे और थाली को देखते हुए।
“तेरा तो व्रत दिखे आज, जा जल्दी से कहानी सुन ले जाकर कभी भीड़ बढ़ जाये, और सुन तू हर बार मुझे बायना देती है ना तो आज मैं पड़ोस में कीर्तन में रहूंगी शाम को तू जल्दी आ जाइयो”।
“ठीक है मौसी मैं 4 बजे दे जाऊंगी इस पूजा का बायना तो 12 बजे ही निकाल दूँगी”।
जिज्जी शशि के पीछे ही खड़ी थी सब सुन रही थी।
शशि को आवाज लगाती, जिज्जी की आवाज सुनकर जैसे शशि के होश ही उड़ जाते हैं।
“ए शशि हमसे तो बोली कि वट सावित्री का व्रत नही रखती हैं तो बायना भी नही निकालती झूठ बोली हमसे, और यहां बायना हाथ मे थाली लेकर मंदिर जा रही है, हमको पसन्द नही करती है, ये तो हम जानते है पर ये बायने का अधिकार तू हमसे छीन लेगी हमें मालूम न था।
शशि “ जिज्जी ऐसा ना है जिज्जी सुनो तो सही मेरी बात आप मुझे गलत समझ रही हो।
मौसी, ऐ निर्मला (जिज्जी) काहें को शशि को उल्टा सुलटा बोले जा रही है उसकी कोई गलती ना है, उसकी बात तो सुन ले।
जिज्जी “तुम चुप रहो मौसी, तुम दोनों ने ही मिलकर पूरी पिलानिंग की होगी कि निर्मला तो बेवकूफ है कुछ समझेगी नही उसको कुच्छो नही देते हैं सब समझती हूं मौसी, और शशि तुम तुमको कुछ नही देना है तो मत दो, कम से कम यूँ बेज़्ज़ती तो मत करो बहूहूहूहू (झूठा रोती है)
शशि “जिज्जी आप बैठो तो सही हम पूरी बात बताते है, हमने कोई धोखा नही किया आपके साथ सच्ची, आप हमारी बात तो सुनिये”
“रहन दे शशि तू तो है ही शुरू से ऐसी चालबाज़, तेरे पे रत्ती भर भरोसा ना है मुझे”
कहकर चली जाती है, जिज्जी के इस व्यवहार से आज शशि की आंखों में आंसू थे।
मौसी शशि को ढांढस बन्धाते हुए, “शशि तू जानती है निर्मला का स्वभाव.... मैं तुझे पहले ही बोली थी कि अगर उसे मालूम चला तो बव्वाल खड़ा हो जाएगा”
शशि “जानती हूँ मौसी मना लूंगी उनको कुछ न कुछ करके पर बायना तो आपको ही दूँगी”
कहकर शशि मंदिर की तरफ बढ़ जाती है।-नेहा शर्मा
बहुत सुन्दर और दिलचस्प.. जिज्जी से पार पाना शशी के लिए सम्भव नहीं लगता..!! 😊