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प्रतीक्षा - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायकलघुकथा

प्रतीक्षा

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फल बेचकर घर लौटने में आज पुनः देरी हो गई राधेश्याम को। झमाझम बारिश में भींगते हुए, बारिश की बूंदों की मार सहन करते हुए वह आगे बढ़ रहा था। रुकता भी कैसे? उसके बेटे की एक जोड़ी आँखें अपने प्रिय पिता की आँखों को देखने के लिए बेताब थी।

@कुमार संदीप

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

सुन्दर

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