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कहानीप्रेरणादायकलघुकथा
फल बेचकर घर लौटने में आज पुनः देरी हो गई राधेश्याम को। झमाझम बारिश में भींगते हुए, बारिश की बूंदों की मार सहन करते हुए वह आगे बढ़ रहा था। रुकता भी कैसे? उसके बेटे की एक जोड़ी आँखें अपने प्रिय पिता की आँखों को देखने के लिए बेताब थी। @कुमार संदीप
सुन्दर