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मेरा स्वाभिमान - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मेरा स्वाभिमान

  • 364
  • 4 Min Read

मेरा स्वाभिमान

ब्याह के सात फ़ेरों के हैं
सात वचन जीवनभर के

आज से तुम्हारा घर होगा
मेरा सदा उम्र भर के लिए
थक चुकी हूँ पराया सुनते

घर मेरा तो प्यार बेटी सा
नहीं हो कोई भी भेदभाव
करूँ शिकवे माँ पापा से

मैं मात्र साधन ना बनूँगी
ज़रूरत नहीं बनना मुझे
मुझे मिले अहम ओहदा

मशीन बन के नहीं रहना
बस कर्तव्य निभाने वाली
अधिकारों की हक़दार हूँ

सबको अपना माना मैंने
मुझे अपनों सा प्यार देना
तभी सब मेरे अपने होंगे

निडर निर्भय हो यहाँ रहूँ
माहौल हँसी ख़ुशी का हो
तभी तो सबको सुख दूँगी

अनचाही हो ग़र मेरी बातें
साफ़ साफ़ बता देना मुझे
लौट जाऊँगी मैं अपने घर

गिना दिए मैंने सात वचन
तुम्हारे सोचकर बता देना

सरला मेहता
स्वरचित

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत ख़ूब..!

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

सुंदर रचना सरला जी..👌👍

वो चांद आज आना
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