कहानीसामाजिकअन्य
"बेटा अब नौकरी करते करते काफी वक्त हो गया अब थोड़ा सेटल होने के बारे में भी सोचो"
पंकज के पिता पंकज के कंधे पे हाथ रखते हुए कहते है।
"क्या पापा शादी शादी शादी लगाकर रखते हो हमेशा क्या शादी से अलग कुछ नही......"
पंकज दनदनाता हुआ दादी के कमरे में चला गया।
"दादी पलंग पर लेटी हुई कंपकपाती आवाज में क्या हुआ पंकज फिर से पापा से झगड़ा किया।"
"देखो न दादी मैं जिम्मेदार हो गया बड़ा हो गया इसका मतलब यह थोड़ा ही न है कि शादी कर लू। पापा समझते ही नही है।"
दादी पंकज को इशारा करते हुए जरा मुझे सहारा देकर बाहर तो ले चल।
पंकज दादी को सहारा देकर व्हील चेयर पर बैठाकर बाहर लाता है।
दादी अपने होंठों पर उंगली रख हाथ से इशारा कर धीरे से बोलती है।
"वो देख मेरा बेटा तेरा बाप कुर्सी 2 है पर अकेला बैठा है।"
पंकज घुटने के बल नीचे बैठते हुए व्हील चेयर के हत्थे पर हाथ रखकर,
"दादी समझा नही"
"तू जिस तरह से अपने पापा से बात करके आया है दुखी हुआ होगा उसका मन पर उसके पास अपने मन की बात कहने के लिए कोई नही। सरला आज होती तो उस कुर्सी पर होती और दोनो अपने मन की बात कहकर हल्की कर लेते"
कहते कहते दादी की आँखे भीग गयी
"जो तेरा पिता तेरे लिए महसूस करता है बस यही वह बात है.... अकेलापन"
"समझ गया दादी मुझे पापा का हर फैसला मंजूर है कहकर हँस देता है। दादी प्यार से उसके गाल पर हाथ रख देती है।" - नेहा शर्मा