कहानीसामाजिक
अगले दिन भानु और शशी पैकिंग कर रिक्शा से बस स्टैंड के लिये निकल पड़ते है, शशि मन ही मन फूली नही समा रही थी। शादी के बाद यह पहली बार हुआ जब वह भानु के साथ अकेले कहीं बाहर जा रही थी। वह भी जिज्जी से दूर कुछ दिन मन की शांति के लिये।
बस स्टैंड आ चुका था दोनों रिक्शा से सामान उतार, भानु रिक्शा वाले को पैसे पकड़ा ही रहा था कि पीछे से किसी ने आवाज लगाई।
“ऐ भानु”
शशि और भानु जैसे ही पलटकर देखते हैं दोनों की आंखें फ़टी की फटी रह जाती हैं सारा नज़ारा देखकर। मानो पैर के नीचे से जमीन जा रही हो, या फिर बादल ऊपर से गरज कर पूछ रहे हों कहाँ फटू। शशि भानु मुंह तक आया थूक गले मे सटक रहे थे। दोनों के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी। दोनों की चोरी जो पकड़ी गई थी जज्जी के सामने।
सामने जिज्जी खड़ी थी। हाथ मे पर्स लिये सिर पर कैप लगाए। जिज्जा भी थे साथ में जिनके हाथ मे हाथ लिए वह खड़ी हुई मुस्कुराए जा रही थी।अब भानु शशि को मानो काटो तो खून नही।
शशि नखून चबाने में व्यस्त दिख रही थी, और भानु तो मानो आंखों पर विशवास नही कर पा रहा था। दोनों को समझ नही आ रहा था कि अब करें तो करें क्या। खैर शशि ने जिज्जी को देखते ही
“अरे जिज्जी कहीं जा रही हो का जिज्जा के साथ”
जिज्जी हाथ मे पकड़े सामान को बाजू रखते हुए
“ क्यों री शशि तू का समझी भानु पर खाली तुम्हरा ही अधिकार हमरा कोई ना है। तुम हमको कुच्छो बताओगी नही तो हमको मालूम नही चलेगा क्या? तुम दोनों घूमने जा सकते हो तो हम भी साथ जाएंगे घुमक्कड़ी क्या खाली तुम दोनों के नाम की ही है। ऐजी चलिये सामान तो उतारिये तनिक। जिज्जा की तरफ इशारा करती है।
भानु जिज्जी का हाथ पकड़ते हुए। “जिज्जी सुनो ना,”
हाँ तो बोलो हम कौन सा कान में 10 किलो रुई ठूंस कर बैठे है। वैसे भानु इस ट्रिप में मजा बड़ा आने वाला है हम तुमको दिखाएंगे हम बड़े मजे मजे की चीज़ लाये है घूमने के लिये। अरे टुन्नू के पापा वो बिस्तरा उतार दो जरा।
भानु “जिज्जी बिस्तरा, बिस्तरा कौन लेकर जाता है ट्रिप पर।
जिज्जी अरे तू नही समझेगा वहां नही मिला तो इसलिये हम अपना लेकर चले हैं।
भानु “जिज्जी तुम्हारा जाना नही हो पायेगा बात समझो”
जिज्जी “ क्यों हम क्यों नही जा पाएंगे बहूहूहूहू (नकली रोते हुए) हमें मालूम था तुम लोगों को हमरा आना पसन्द आएगा ही नही, तुम तो कभी चाहोगे ही नही की हम साथ मे आये, बहूहूहूहू ( जिज्जा की शर्ट से नाक पोंछ देती है।
भानु “जिज्जी पहले सुन तो लो”
जिज्जी “ अरे क्या सुने तुझे तूने तो पूरे अरमानों पर पानी फेर दिया बहूहूहूहू”
भानु “जिज्जी यह ट्रिप मेरी ऑफिस साइड से है, सिर्फ मैं और शशि को ही जाने की अनुमति है”।
जिज्जी “अच्छा शशि को जाने की अनुमति है हमें नही हममें कौन सा कांटे लगे है, आग लगे तेरे ऐसे ऑफिस को, हम बता रहे हैं, अगर हम भी न गए तो तू भी नही जाएगा, और अगर गया तो हमरा मरा मुंह देखेगा चलो जी यहां कोई अपना नही है सबको अपनी अपनी पड़ी है।
भानु “जिज्जी सुनो तो, सुनो तो सही” कहता रह जाता है।
शशि “चलें वापस,
भानु हाँ चलो और कर भी सकते हैं। यह ट्रिप कभी और कर लेंगे।
कहकर दोनों वापस निकल पड़ते हैं घर की और।-नेहा शर्मा
जिज्जी सर्वव्यापी हैं.. उनसे बच कर निकल पाना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है..! 😊.. शशी.. कितना भी कोशिश कर ले..!!