कहानीलघुकथा
#शीर्षकः
" लचीलापन "
सोसायटी वाले पार्क में पांचवे माले पर रहती अनीता की मुलाकात अक्सर ही दूसरे माले की , बड़े ऑफिस में काम करने वाली मेघा से हो जाती है। यों तो दोनों में उम्र का खासा फासला है पर वैचारिक समझदारी एक सी है । फिर मेघा उसे दीदी मानती है।
अनीता को भी उसका साथ पसंदहै।
रविवार की शाम दोनों पार्क में टहलती हुई आपस में गुफ्तगूं कर रही हैं दीदी ,
" सोचती हूं मौसी का घर छोड़ अब अलग रहने लंगू " ।
"क्यों भला ? "
" दीदी वे जब - तब मेरे सहकर्मियों को ले कर टोकती रहती हैं "।
अनीता खामोश हो गईं। वो मेघा को उस समय से जानती हैं जब
विभागीय प्रमोशन पा तबादले के बाद वह अपनी विधवा मौसी के साथ उनके बड़े से खाली पड़े फ्लैट में रहने आई थी ।
उंचे पद पर कार्यरत साफदिल और मुंह फट मेघा को अपने निजी कार्यों में मौसी तो क्या किसी की दखलंदाजी नहीं पसंद है ।उसे कभीकभी जब देर हो जाती है तो ऑफिस की गाड़ी छोड़ जाती है। तथा छुट्टियों मे भी विचार विमर्श के लिए सहकर्मी घर चले आते हैं बस यही सब मौसी की चिंता का कारण बन जखता है।
" बेचारी लड़की " अनीता हंसने लगी।
इस भावुक लड़की को हैंडल करना वह अच्छे से जानती है।
प्यार से उसे थपथपाते हुए बोली ,
" देखो मेघा तुम पढ़ी - लिखी और समझदार हो फिर मौसी तुम्हारी माँ से बड़ी मतलब उम्र में तुमसे ४५ वर्ष पीछे हैं।
"तुम्हारे देर सबेर आने से वह किस कदर परेशान हो जाती हैं यह मैंने देखा है" ।
" कभी उनके स्थान पर खुद को रख कर देखो तब समझ में आएगा वे क्यों चिंता करती हैं और तुम्हें वक्त वेवक्त टोकती भाग हैं।"
"वे दिल की बुरी नहीं हैं सोचो तो उन्हें कितनी परवाह रहती है तुम्हारी।
कोई बीच का रास्ता निकालो । तुम छोटी हो लचीलापन तो तुममें ही ज्यादा होगा फिर तारतम्य भी तुम्हें ही बैठाना चाहिए "।
"क्यों मैं गलत तो नहीं कह रही ?"
मेघा ध्यान से अनीता को देख ,सुन और गुन रही थी अनीता के हाँथ थाम धीरे से बोली ,
"ओ नहीं थैंक्स दी "
उसकी आंखों के दीप प्रज्वलित हो गए और चेहरे पर संतोष के भाव फैल गये हैं 😊😊
सीमा वर्मा /स्वरचित
पटना
बहुत सुन्दर और उचित परामर्श..!!
जी हार्दिक धन्यवाद