कहानीबाल कहानी
#शीर्षक
" मिनी "
मिनी को मुम्बई आए हुए करीब छः -सात महीने हो गए हैं ।
कहाँ गांव की हरियाली और कहाँ कंक्रीट के जंगल ?
फिर भी मिनी का दिल अब लगने लगा है अच्छा सा स्कूल देख पापा ने दाखिला करा तो दिया है पर अभी चल रहे औन लाईन क्लासेज की वजह से कंही बाहर जाना नहीं हो पा रहा है ।
इसलिए सोसायटी के अन्दर ही बने लम्बे -चौड़े पार्क में वह जाती है ।
अब तो दो- चार साथी भी बन गए हैं उसके ।
पार्क में बने छोटे से पौंड के आस- पास कबूतरों का डेरा है ।
मिनी को उन्हें देखना बहुत पसंद है खास कर उनकी वह गुटर- गूं ।
जिसे सुन वह उनसे ही सुर मिलाती हुयी गोल-गोल घूमती और बोलती है ।
" गुड़-गुड़ , गुड़-गुड़ , गुड़- गुड़ , पुच्च " !
" गुड़-गुड़ , गुड़- गुड़ , गुड़-गुड़ , पुच्च " !
मिनी उनके लिए दाने भी ले कर आती है जिसे अपने दोस्तों के साथ मिल कर बिखेर देती है ।
और उन्हें पास आते देख ताली बजा खूब खुश होती है
उसकी मम्मा और पार्क में सभी उनके इस पक्षी प्रेम को देख उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते ।
उसकी फेवरिट दोस्त पिंकी की दादी तो उसे गले ही लगा लेती है ।
सीमा वर्मा / पटना
बहुत प्यारी सी मिनी की अपनी अलग दुनिया आगे भी इंतजार रहेगा मिनी की करामातों के