कवितालयबद्ध कविता
शीर्षक :
" वो लड़की "
चली जा रही थी कब से वो अकेली यूं ही अनमनी हुई अंजान राहों में खोई सी।
अचानक किसी मोड़ पर मिली हँसती खिलखिलाती उसे जिंदगी, कहा रुक तो
जरा।
इधर आ कहाँ चली? वो ठिठकी,रुकी ,सकपकाई सी इक पल को मुस्कुराई।
क्या है यही मकसद उसके जीने का? वो तो सोचती थी कुछ अलग करने की सदा से।
दीन दुखियों से धरा भरी पड़ी है, जिसे देख वह विचलित रहती बुझी-बुझी सी।
थोड़ी लापरवाह सी कँधे उचकाती आगे
बढ़ गई तुझे तो मैं ढूंढ ही लूँगी ऐ मेरी जिन्दगी।
पहले मुझे पुकारती, व्याकुल बेचैन है 'माँ भारती'।
उसके तपते दग्ध विशाल हृदय पर शीतल रूई के फाहे रख दूँ।
फिर आना स्वागत करूंगी तेरा मेरी बांहों में ऐ जिंदगी।
स्वरचित / सीमा वर्मा