कवितालयबद्ध कविता
खुद की खुद्दारी पर है जिंदगी गुजार दी
हाथ किसी के सामने मगर फैलाया नही
मेहनत से कमाया हर एक निवाला उसने
मगर भीख माँग उसने तो कभी खाया नही
छोड़ कर गये थे कभी बच्चे उसे सड़क पर
फिर कभी कोई उसे लेने घर को आया नही
एक दर्दे कहानी छुपी थी जो उसके जहन में
बूढ़ी माई ने जिसे किसी को कभी सुनाया नही
स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। #वाराणसी(U. P)