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खुद्दार जिंदगानी - संदीप शिखर (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

खुद्दार जिंदगानी

  • 237
  • 2 Min Read

खुद की खुद्दारी पर है जिंदगी गुजार दी
हाथ किसी के सामने मगर फैलाया नही

मेहनत से कमाया हर एक निवाला उसने
मगर भीख माँग उसने तो कभी खाया नही

छोड़ कर गये थे कभी बच्चे उसे सड़क पर
फिर कभी कोई उसे लेने घर को आया नही

एक दर्दे कहानी छुपी थी जो उसके जहन में
बूढ़ी माई ने जिसे किसी को कभी सुनाया नही

स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। #वाराणसी(U. P)

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब

प्रपोजल
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माँ
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