कविताअतुकांत कविता
परछाईयाँ अगर बोल सकतीं
तो मैं उनसे जरूर पूछती
क्या तुम भी मेरी तरह
मन मस्तिष्क में उठने वाले ज्वार भाटो में
घिरी रहती हो......
अवसाद के आँगन में बैठ कर
क्या तुमने भी अपने भावों को
धूप में सुखाए है ....
कभी घुटन में
तुमने भी छटपटाहट महसूस की
क्या करती हो तुम
इस भाव से अभाव में जाने के लिए ....
एक बात जो मैं तुमसे नही पूछूँगी
मैं जानती हूँ
तुम्हारा भी कोई नही है मेरी तरह.....
~सोभित ठाकरे