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परछाईयाँ अगर बोल सकती - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

परछाईयाँ अगर बोल सकती

  • 158
  • 2 Min Read

परछाईयाँ अगर बोल सकतीं
तो मैं उनसे जरूर पूछती
क्या तुम भी मेरी तरह
मन मस्तिष्क में उठने वाले ज्वार भाटो में
घिरी रहती हो......
अवसाद के आँगन में बैठ कर
क्या तुमने भी अपने भावों को
धूप में सुखाए है ....
कभी घुटन में
तुमने भी छटपटाहट महसूस की
क्या करती हो तुम
इस भाव से अभाव में जाने के लिए ....
एक बात जो मैं तुमसे नही पूछूँगी
मैं जानती हूँ
तुम्हारा भी कोई नही है मेरी तरह.....
~सोभित ठाकरे

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Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

सुंदर अभिव्यक्ति...👌

सोभित ठाकरे3 years ago

धन्यवाद मैम

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर रचना

सोभित ठाकरे3 years ago

आभार सर

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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