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छोटे-छोटे कायनात कई - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

छोटे-छोटे कायनात कई

  • 245
  • 10 Min Read

चोरी चोरी, चुपके-चुपके
खुद से ही लुकते-छुपते
कुछ गुमसुम से, 
कुछ चुप-चुप से
कुछ चहकते, कुछ महकते
कुछ बहकते, कुछ दहकते,
कुछ उमंगते, कुछ सुलगते, 
हालातों से लुटते-लुटते
हो धुआँ-धुआँ घुटते-घुटते 
दबे-ढके जज़्बात कई

लमहे-लमहे में सिमटे से
एक दूजे से लिपटे से
फिर अलविदा कहते जाते
उठती-गिरती सी लहरों संग
हो गड्डमड्ड बहते जाते
दिन रात कई

वक्त के हर झोंके से,
पल-पल मिलते और 
बिछुड़ते मौके से,
जिंदगी की रेत पे,
जिंदगी को देखते,
हर लमहे के झरोखे से,
नाजुक एक घरौंदे से 
बनते-मिटते, 
हिलते-मिलते से, खोते से
छोटे-छोटे कायनात कई

इन राहों की गर्द संग
खोते-सोते दर्द, उमंग
मन की गगरी से छलके से
पलकों की चिलमन पे ढलके से
बिखरे-बिखरे, निखरे-निखरे
रंग कई आकर ठहरे गहरे-हल्के से

कुछ रूकते,
कुछ चलते से
इन भूलभुलैया सी 
गलियों में ढलते से
ठोकर खाते 
और फिर सँभलते से

कुछ कहते, 
कुछ चुप रहते,
जो भी जीवन ने बाँटे,
थोडे़ फूल, बहुत से काँटे
चुपके चुपके सहते-सहते
तनहा-तनहा, लमहा-लमहा
बूँद बूँद बहते-बहते

हर एक सुबह संग
एक नया सा आज बन
एक नये अंदाज का आगाज बन
हर एक छुअन, हर एक सिहरन
बनकर पल-पल एक धड़कन
पल-पल संग-संग कल में ढलकर
अपना वजू़द खोते ही रहे

अपने नाजुक से कंधों पर
बस खुद को ढोते ही रहे
मोती पल-पल की सीप में
एक ज्योति हर एक दीप में
एक दरख़्त हर एक 
अवसर के बीज में
बोते ही रहे,
बोते ही रहे

कुछ बिखरते, 
कुछ निखरते से
लमहों  को
फूल बना
मन की झोली में
बनाकर रंग नया
इस सतरंगी रंगोली में
बनाकर हमजोली
जीवन की आँखमिचौली में
बनाकर बच्चे सा उन्मुक्त हास
जीवन की हँसी-ठिठोली में
एक भेंट से सहेजते
और संजोते ही रहे

जीवन बगिया को सींचते
जीवन की डोरी खींचते
हर एक उलझन, 
हर एक अड़चन,
हर एक छुअन,
हर एक चुभन,
हर एक सिहरन, 
हर एक फिसलन
सहते ही रहे
सहते ही रहे

इस जीवन के मेले में
इस भीड़ में अकेले से
लमहों के इस रेले में
बन बूँद-बूँद बहते ही रहे

हर मोड़, हर पडा़व पे
हर उतार पे, हर चढा़व पे
हर एक धूप-छाँव में
पसरे हर ठहराव से
मुँह मोड़कर
हर पल से नाता जोड़कर
हर कल को पीछे छोड़कर
हर लमहे संग छोटी-मोटी
जोड़-तोड़कर
हर एक डगर संग 
हमसफर बन
रहते ही गये, 
रहते ही गये


बन खामोशी, एक मदहोशी,
बन दीवाना, हर अफसाना,
अपना हो या फिर बेगाना,
कहते ही रहे
कहते ही रहे

द्वारा : सुधीर अधीर

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत भावपूर्ण स्रजन..!

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