कहानीलघुकथा
चित्र आधारित रचना
#शीर्षकः
" मिट गई दूरिया"
बारिशों के मौसम में इस बार ममा ने रोहण को घर में ही रहने की हिदायत देते हुए नये स्केट्स ला दिए हैं। साथ में पापा की अच्छी-खासी चेतावनी भी मिली है।
" देखो रोहण बारिश के पानी में भीगने की जरा भी जरूरत नहीं है, याद है ना पिछली बार क्या हुआ था पूरे तीन दिन बिस्तरे पर थे"।
ममा ने यह कहते हुए,
"किअगर फिर वैसी गलती दुहराई तो अच्छी पिटाई करूगीं"।
कहते हुए प्यार से कान उमेठ दिए।
अब रोहण बिचारा क्या करे?
दिन भर पढ़ाई तो कर नहीं सकता है। सर्वेंट क्वार्टर वाले बच्चों के साथ खेलने की सख्त मनाही है।
सारे दिन स्केट्स पर सवार हो कर हवा से बातें करता रहता है।
जिसे गोलू ललचाई आंखो से देखता है। एक दिन उससे रहा नहीं गया। डरते हुए पूछ बैठा,
"भैयाजी मुझे सिखाओगे"?
"हट्ट चलो जाओ ये आसान नहीं है"।
गोलू बिचारा अपना सा मुंह ले कर रह गया।
आज दोपहर के वक्त अचानक पूर्व दिशा की ओर से काले, घनघोर बादल आ गए और देखते ही देखते बारिश भी शुरू हो गई है। रोहण के पापा ऑफिस गए हैं। और ममा आराम की नींद ले रही है।
रोहण खिड़की पर खड़ा मायूसी से हो रही घनघोर बारिश को तृषित निगाहों से देख रहा है।
तभी उसकी नजर माली के बेटे गोलू पर जा टिकी जो हाते में ही जमा पानी में, खूब उछल-उछल कर नाच कूद रहा है।
अचानक ही गोलू की नजर उस पर चली गई। आज भी उससे नहीं रहा गया पूछ बैठा,
"क्यों भैयाजी आओगे"?।
मासूमियत भरे इस आमन्त्रण में मानों चुम्बकीय शक्ति थी। रोहण पापा की डाँट और ममा की पिटाई सब भुला कर गोलू के साथ पानी में कूद पड़ा।
उनके बीच की हैसियत वाली दूरी मिट चुकी है।
सीमा वर्मा
bahot achhi Rachna ..Masumiyat se Bhari hui.
जी हार्दिक धन्यवाद सर