कविताअतुकांत कविता
#शीर्षक#
" इन्तजार "
बीतता है हर दिन
एक चुप्पी के बीच
जैसे एक शब्द से
तोड़ता उसके मौन
और उसके पास कुछ
नहीं होता उस क्षण
को देने के लिए
सिवा इन्तजार के ...
जैसे लम्बे अन्तराल
के बाद शःनै-शःनै
सवाल लिए उठी
उसकी आंखें भूलती
हैं पलकें झपकाना
और गुजरे वक्त की
राख झरने लगती है
कहती हुयी कि यह ...
जीना भी कोई जीना है ?
सीमा वर्मा ©®