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लालसा 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

लालसा 💐💐

  • 320
  • 12 Min Read

#शीर्षक
"लालसा "
श्रीमती अनीता की उम्र ७२ वर्ष की थी जब वे विधवा हुई ।
वे कोई आम औरत नहीं हैं।उन्हें रोना बिलखना नहीं आता।
वे एक लम्बे कद की गठे शरीर वाली महिला जो बहुत धीरे बोलती एवं जिन्होंने बेहद सीमित साधनो में अपने तीन बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया है।
कठिनाइयों के बीच होते हुए भी उन्हें ऊंची शिक्षा दिलवाई है।
गृहस्थी की गाड़ी पूरे रफ्तार से चल रही थी जब वह काला दिन आया। एक दिन अचानक ही सुबह में पति चल बसे।
उनके पति की जब मृत्यु हुयी थी। उस वक्त वे घर में बिल्कुल अकेली थीं। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सारे काम-काज अकेले ही संभाला।
वे पति मनोहर जी से जी जान से प्यार करती थीं।
पर उन्हें सुकून है कि वे एक भरी-पूरी जिंदगी जी कर गये हैं। और चूकि उनके मन में कोई मलाल नहीं रहा था। सो आत्मा भी सुकून से परलोक प्रस्थान कर गई।
श्राद्ध संस्कार में बच्चे आए हुए हैं। जिन्होंने यह सोच कर कि अब वे शायद अकेली नहीं रह पाएगीं उन्हें अपने साथ ले जाना चाहा ,
लेकिन फिर बाद में अनीता जी की ही इच्छा नहीं देख उन्होंने अपनी जिद छोड़ दी और कुछ पैसे लगातार भेजते रहने का दिलासा दे कर सभी वापस लौट गए।
इतना सब कुछ घटित हो गया है पर भी अनीता जी के जीने की चाहत कतई कम नहीं हुई है।
बच्चों के द्वारा भेजे पैसों से वे आराम से घूमती-फिरती,मुहल्ले वालों के साथ तीर्थाटन और व्रत करती हुई सदा अपने को व्यस्त रखती हैं।
अड़ोस-पड़ोस की शादियों में दिल खोल कर खर्च करती हैं।
गर्मियों में तड़के उठती खाली सड़क पर लम्बी सैर करतीं ।
शरद ऋतु में खिड़की से बाहर हरसिंगार अब भी खूब-खूब खिलते हैं।
वे घंटों बैठी उसके सुगंध में डूबी अड़ोस -पड़ोस के बालवृंद के स्कूल से लौटने का इंतजार करती रहती हैं।
वे अकेली कहीं से भी नहीं हुयी हैं।
मोहल्ले के महिला समाज का कोई भी कार्यक्रम उनके बिना पूरा नहीं होता।
कुल मिला कर वे बेहद संयत हैं।
ना ज्यादा प्रफुल्लित ना ही ज्यादा शांत।
उनके बच्चे खुशगवार और विनोद प्रिए हैं
वे नियत समय पर आकर माँ से मिलते रहते हैं।
वे यह भी सोचते कि माँ ने हमारी खातिर लम्बे संघर्ष किये हैं।
अब उन्हें वही सब करने दिया जाए जो वे चाहती हैं ।
अनीताजी ने भौतिक सुख सुविधाओं को पूरा करने की पराधीनता के लम्बे वर्ष और स्वाधीनता के कुछ वर्षों को खूब जिया है।
रोटी के अन्तिम कौर तक के स्वाद लिये।
यो सच कहें तो जीवन के अन्तिम कुछ साल कर्मयोगनी अनीताजी अपनी इच्छा से स्वतंत्रता भोग रही हैं।
दीपावली आने में ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। जिसमे सारे बच्चे आने वाले हैं।
वे इस सुअवसर पर अपनी बहुत पुरानी लालसा "श्री मद्भागवत कथा" सुनने के मीठे सपने संजो रही हैं।

सीमा वर्मा /स्वरचित
©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Kitna pyara

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

wah kitni pyari

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत सुंदर लेखन 👌👌

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना.. पति के निधन के बाद, समाजोपयोगी जीवन जीना.. सामान्य दिनचर्या रखते हुए.. मानसिक मज़बूती को दिखाता है..!

सीमा वर्मा3 years ago

जी आपका बहुत ... धन्यवाद सर 🙏🏼🙏🏼💐💐

दादी की परी
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