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गजानन के यादों का शहर 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

गजानन के यादों का शहर 💐💐

  • 150
  • 15 Min Read

# शीर्षक
"गजानन के यादों का शहर "

करीब डेढ़ सौ किलोमीटर की रफ्तार से भाग रही ट्रेन धीरे होती हुयी शायद किसी छोटे से स्टेशन पर रुक गई थी।
गजानन ने खिड़की में से सिर निकाल कर पीले रंण के बोर्ड पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था , " मैनपुरी " उनकी यादों में बसा शहर ।
तनिक भी देर नहीं करते हुए वे उतर गये ।
गजानन यायावर हैं कंही भी टिक कर रहना उन्हें नहीं भाता ।
स्टेशन से बाहर निकल टैक्सी वाले को आवाज दी ।
चालक ने पूछा, " कहाँ जाना है साहब "?
अपने शहर की ताजी हवाओं से सराबोर गजानन ने अपने -आप को सीट के हवाले कर कहा ,
"जहाँ तुम्हारी मर्जी हो ले चलो मंजिल तो कोई नहीं है बस इन्हीं फिजाओं में पल कर बड़े हुए भैय्या हर नयी पुरानी गलियों में खो जाना चाहता हूँ" ।
और पीछे की सीट पर सर टिका आंखें मूंद लीं ।
चालक उम्र दराज था समझ गया। ऐसे ना जाने कितनो से ही उसका सामना रोज होता था।
आंखे बन्द करते ही पिछला कितना कुछ आ गया गजानन की नजरों के सामने ।
पिता की विशाल सम्पत्ति के एकमात्र उत्तराधिकारी गजानन को क्या कुछ नहीं हासिल था उन दिनों ।
लेकिन शायद जब ख्वाहिशें भी जाहिर होने के पहले ही पूरी हो जाती हैं तो उतनी महत्वपूर्ण नहीं रह जाती ।
शायद इसी सबके के कारण एक वैराग्य सा भाव उपज गया था उनके मन में ।
बीच - बीच में चालक के बताने पर वे आंखें खोल कर देख लेते अपने अंग्रेजी स्कूल के भवन , महाविद्यालय का प्रागंण , पुराना सचिवालय आने पर उन्होंने गाड़ी रुकवा ली और घंटो उसके बागीचे में बैठे रहे यंही तो वे अपनी एकमात्र बाल सखा कामिनी के संग आया करते थे ।और उसके ध्यान आने पर होठों पर मुस्कुराहट आ गयी उससे मिल हाल - समाचार जानने की इच्छा बलवती हो गई ।
ओह यहीं इसी शहर में तो वह अपनी खुशहाल शादीशुदा जिन्दगी बिता रही है।
टैक्सी वाले को उसके घर का पता बता कर फिर से आंखें मूंद ली थीं ।
उनका युवावस्था काफी संघर्ष पूर्ण बीता था ।
पिता चाहते थे वे उनकी वकालत वाली विरासत को आगे ले जाए और जब कि उनका मन इस सबमें रमता ही न था वे सारी दुनिया घूमना चाहते थे ।
उन्हें याद नहीं आ रहा है कि कभी सोलह या अठारह वर्ष की उम्र में भी वे रोमानी हुए हों ...।
तभी टैक्सी वाले ने उनके बताए पते के बीच में ही स्थित इमारत पर गाड़ी रोक दी और कहा , " देखें सर जी " सेवा सदन " की बहुचर्चित बिल्डिंग " ।
वा...ह उन्होंने चालक की पीठ थपथपाई और उतर गए इसे कैसे भूल सकते हैं ?
पिता द्वारा छोड़ी गई अथाह सम्पत्ति में से थोड़ा बहुत अपने लिए रख सब इस संस्था में तो दान कर दी थी ।
कुछ पल वहाँ रुक अपने खोए वजूद को पहचानने की नाकाम कोशिश कर वे लौट गए ।
टैक्सी में बैठ उन्होंने कामिनी को अपने मिलने आने की सूचना दे देना उचित समझ फोन कर दिया था।
उसके घर पंहुचने में लगभग दो घंटे लग गए काफी थकावट हो गई थी ।
उन्हें परन्तु उसके घर पंहुचते ही वो सपरिवार मय पति- बच्चों समेत जिस खुले दिल से मिली उनकी सारी थकान जाती रही कामिनी ने उन्हें उनके ख्वाबों के शहर की तमाम अच्छी - बुरी खबरों से रस ले कर वाकिफ कराया था।
बीच- बीच में उसके खुशदिल पति भी यदाकदा तड़का लगा रहे थे ।
गजानन को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
रात के बारह बजे उनके वापसी की ट्रेन थी इस बीच मिले चार घंटे गजानन ने उन गुजरे लम्हों को खूब जिया ।
अब उन्हें अगली मंजिल की ओर निकलना था तो फिर से आने का वाएदा कर वापस टैक्सी में जा बैठे ।

स्वरचित / सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Wah

Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Wah

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

kya bat hai

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

वाह लाजवाब यादों का शहर

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण.. अपने शहर की बात ही कुछ और है..!!

सीमा वर्मा3 years ago

जी सर आपकी प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ाती है 🙏🏼🙏🏼

दादी की परी
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