कविताअतुकांत कविता
शीर्षक ...
" खुशनुमा लम्हे "
मैं अपने रचे गीतो के
पंख पर हो कर सवार
बनूँ इनकी मालकिन
और होकर गुलाम...
हुई बादलों पर सवार
बिना लगाम,बिना रकाब
यही ले जाएं मुझे
इन्द्रधनुष के पार...
मन छेड़े तराना जैसे
गुन,गुन,गुन...
जी गई फिर से मैं ,जिन
लम्हो में आया इन्हें रचने
का हसीन ख्याल ...
स्थिर हो कर भी गाऊंगी
जीवन के गीत ...
जैसे मिल गया कोई
पुराना मन मीत ...
सीमा वर्मा ©®