कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" स्मिता आंटी "
सोसायटी के पार्क में बनी बेंच पर बैठी राईमा घोष अपनी फेवरिट आंटी जी स्मिता की बातें सुन मुग्ध हो रही है ।
वे बेहद खुशदिल और समझदार हैं उनसे सोसायटी में लगभग सभी प्रभावित हैं ।
रमोला के बेटे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ इसी शहर में औफिस से मिले बंगले में रह रहे हैं।
वे अक्सर दुखी रहती हैं।
इसके विपरीत कि स्मिता के दोनों बेटे विदेश में जा बसे हैं और वे इस बात को अच्छी तरह समझती हैं कि शायद ही कभी उन्हें बच्चों का सानिध्य निकट भविष्य मेंं प्राप्त होगा ।
वे काफी खुशदिल और अच्छे एवं बुरे दोनों वक्त में सभी लोगों की हेल्प करती हैं। सोसायटी के लोग भी उनसे खूब खुश रहते हैं और उन्हें मानते हैं।
वे रमोला को किसी बात से खिन्न होती देख समझा रही हैं ,
" देख रमोला द्वार बन्द कर लेने से बाहर का शोर तो नहीं थम जाएगा ।
मुझे देख मैं तो शुरु से ही निःसंकोच बाहर निकलती हूँ । सखियां बनाती हूँ "।
सुन कर रमोला आंटी ने बीच में ही टोकते हुऐ कहा ,
" ओह तुम बहुत खुशकिस्मत हो स्मिता मुझे तो तुरंत में उलाहना मिलेगी , बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम "।
इस पर मुस्कुरा कर स्मिता आंटी बोली ,
" ऐ है ऐसे तो नहीं कहो , बोलो अभी तो मैं जवान हूँ " ।
रमोला बोली सही कह रही हो बुजुर्ग रहते हुये भी हमारी हालत जवानों जैसी ही तो है ।
इस उम्र में भी हम घर चलाने से लेकर अपने स्वास्थ्य तक की देखभाल भी स्वयं ही तो कर रहे ।
पर क्या करें बच्चों ने दूर रह कर भी मुझ पर बंदिशे लगाई हुयीं हैं। रमोला बेचैन हो कर बोलीं ।
स्मिता " देख समस्यायें तो आती जाती रहेंगी जब इनका कोई हल ना निकले तो उसे फैला कर सुलझा लिया कर " ।
रमोला बोली,
सच में सही कह रही हो ।
तुम किस कुशलता से बदलते रिश्तों .में आए परिवर्तन को स्वीकार कर आगे बढ़ गई हो ।
और मैं राईमा उन दोनों आंटी जी की बातों से प्रभावित हुई अपनी जीवन दिशा निश्चित करने में लगी हूं। इस उम्र में भी स्मिता आंटी कितनी प्रफुल्लित और आकर्षक दिखती हैं । सच में सच्ची खुशी और संतोष चेहरे पर छलक ही जाती है ।
स्वरचित / सीमा वर्मा
बहुत सुन्दर और आशावादी..!
जी आपका बेहद धन्यवाद सर सुंदर प्रतिक्रिया