कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" तीन-पन्ने "
सन् २०/०२/१६ पृष्ठ संख्या '२१' दिन मंगलवार...
आज बस स्टैंड तक पंहुचने में ही नौ बज गए थे । उस पर से सड़क जाम ,लेट हो ही गई थी।
किसी तरह भागती हुई क्लास में जा ही रही थी कि ऐवसेंट मार्क ना लग जाए पीछे से मिसेज जोशी की कड़कती आवाज ,
" इतनी जल्दी भाग-भाग कर क्लास में जाएंगी तो लड़कियों को कैसे कंट्रोल कर पाएंगी मिस भारती।?"
"मतलब साफ ऐवसेंट मार्क लग चुकी है।"
दूसरा पन्ना...
सन् २०/१२/१६ पृष्ठ संख्या ८९... विवाहोपरांत...
ससुराल की देहरी पर खड़ी मैं स्वागत गीत
" थोड़ी धीरे-धीरे चलिओ ससुर गलियां"
सुन मर्यादा की परिधि में बंधे रहने की पुरजोर कोशिश में अपने पंख बांध लिए।
भारती
तीसरा पन्ना...
सन् २०/६/१८ पृष्ठ संख्या १०१...
जिंदगी बिल्कुल ठहर सी गई है। सतीश की कड़ी और शक्की दृष्टि से कदमों की गति में जब विराम लगा लिए तब आज ही तो,
" कितनी स्लो हो तुम कितना धीरे-धीरे चलती हो दुल्हन की तरह। आखिर पांव की मेंहदी कब उतरेगी तुम्हारी?।
अब मुझे धीरे से तेज और तेज चलने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
सीमा वर्मा /स्वरचित
बहुत भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी..!
जी आपका बेहद आभार सर आपकी प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ाती है 🙏🏼