कहानीअन्य
मेरी तन्हाई
बहुत सोचा की अब में क्या नया कर सकती हूँ, सब मुझे कहते है, की मैं बहुत उदास रहती हूँ मुझे अपने बारे मैं भी सोचना चाहिए की मुझे क्या अच्छा लगता है,
मुझे क्या पसंद है, हमेशा दूसरों के बारे में सोच कर कुछ
भी हासिल नई हुआ, मैने हमेशा सब की मदत की पर
मुझे जरूरत थी ,जब कोई नही आया सब बस दूर से ही बोलते है, की कोई भी काम हो तो बोलना सही बोलू तो मुझे हमेशा ही गलत लोग ही मिले अगर कोई मिला तो शायद मेरी बहन थी, आज भी वो ही है वो मुझे समझती
मेरा सारा गुस्सा उस पर ही निकलता है, उस के साथ भी हमेशा यही हुआ हम ने अक्सर धोखा खाया है हम दोनों की
आदत है की हम ना चाहते हुए भी हम दोनों से किसी का दुख नही देखा जाता है मैं बहुत सोचती हूँ की नई करूँगी अब किसी की मदत पर ना जाने क्यों किसी को भी मुसीबत मै देखती हूँ, तो मन नई मानता है पर अब मेने
सोचा है की नए साल में अब में अपने लिए ही सब कुछ करूँगी, मुझे क्या पसंद है, मुझे क्या अच्छा लगता है
ये सब में याद करूँगी सही बोलू तो अब मुझे क्या अच्छा लगता है, मुझे याद नहीं है, हमेशा जो सब को अच्छा लगा
वही बनाया जहा सब को जाना वही चले, कभी अपनी बात रखी ही नई, लगा हमेशा की सब की खुशी में ही मेरी खुशी हैं, पर अब नही अब में अपने लिए ही सोचने का मोका दूँगी अपने आप को में अब वही करूँगी जो मुझे अच्छा लगता है चाहे अपने लिए करू या किसी दूसरे के
लिय वही करूँगी, चाहे कुछ भी हो हा बस भगवान से प्रार्थना है की सब को स्वस्थ रहेगे!
हमेशा दूसरों के लिए करने वालों की अपनी पसन्द नापसंद.. महत्त्वहीन सी हो जाती है.
सही कहा आपने