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एकलव्य का अंगूठा - Shiva Prasad (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

एकलव्य का अंगूठा

  • 217
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कलमकार- रहबर क़बीरज़ादा
एकलव्य का अंगूठा
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एकलव्य का अंगूठा,
संसार में सब से अनूठा।
पूँछ रहा है,
हम से, तुम से,
सभी से।
तब से, आज से,
अभी से।
एक प्रश्न-
सर्वथा जीवंत।
कोई तो कर्म-
दण्ड का अधिकारी होगा?
स्वाध्याय,
अथवा गुरु भक्ति।
याकि कदाचित दोनों ही।
कोई तो आये,
आकर मुझे समझाये।
मुझे प्रश्न शून्य करे,
मेरी पहेली सुलझाये।

एकलव्य का अंगूठा,
संसार में सब से अनूठा।
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर रचना

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

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