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महजबीं बाई 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँ

महजबीं बाई 💐💐

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विषय आधारित रचना
#शीर्षक
महजबीं बाई ...

फागुन की होली का प्रातःकाल अपने आलीशान घर के छत पर अकेले खड़े अधेड़ उम्र धरणीधर जिनके सिर के दो - चार बाल पक गए हैं सिवाय इसके उनके लम्बे चौड़े शरीर में जरा भी शिकन नहीं आई है ।
स्वास्थ्य और सुगठित शरीर वाले धरणीधर के चेहरे की चमक - दमक अभी बरकरार है ।
इस रंगीन माहौल में वे मुग्ध हैं। कमनीय वातावरण ने उन्हें बेचैन कर उनके अकेलेपन को और भी बढ़ा दिया है ।
उन्हें निलोफर और उसके भाई अहमद की याद बेसाख्ता आ रही है, जिनका खानदान उन्हीं के मुहल्ले में रहा करता था साथ ही याद आया उनके साथ बीते दिनों की बचपन का वो गुजरा जमाना ।
यह कहानी उस बीते वक्त की है जब गांव की हवा में आज की तरह जहर नहीं घुला था ।
आपसी भाईचारा और सद्भाव कायम थे । गांव में जब भी कोई मुसीबत आती दोनों मित्र साथ ही रहते धरणीधर कहते ,
"दुनिया से धरम -करम उठते जा रहे इसलिए मुसीबतों के दौर आ रहे " और अहमद इसपर हामी भरता ।
वे कभी अलग भी होगें ऐसा उन दोनों में से किसी ने नहीं सोंचा था । अहमद कहता ,
"मजहब कोई एक नहीं है तो क्या हमें एक दूसरे पर विश्वास तो है उसे हम चोट नहीं पंहुचा सकते ऐसा करने से धर्म को धक्का पंहचता है " और इस बात पर धरणीधर हामी भरते ।
खैर ... नीलोफर उन्हे बहुत पसंद थी साथ पले बढ़े थे और शुरू से ही उसे जीवन संगिनी के रूप में देखा है ।
उस बार भी होली की पूर्व संध्या में छत पर धवल चांदनी फैली हुई थी निर्मल आकाश तले एकांत के सूत्र पकड़ कर दो दिल एक साथ आए और अलसाई हुयी शाम में नये - नये वायदे किए गये कसमें निभाने की रस्में पूरी की गई ।
भाव को भाषा मिली और दो दिल एक बदन एक जान हो गए थे ।
इस वाकये के कुछ समय उपरांत यों तो उपर से सब शांत है , लेकिन अन्दर ही अन्दर वैमनस्य की लहर फैल रही थी ।

और यह तूफान से पहले वाली शांति है इससे पूर्णतः बेखबर तो नहीं थे धरणीधर लेकिन व्यापार के सिलसिले में बाहर जाना भी आवश्यक था ।
पीछे दंगाइयों ने सारे गांव को तहस नहस कर घर जला दिए गए थे।
उनके आतंक के डर से बहुत से गांव वाले छोड़ कर चले गए है जिनमें एक परिवार नीलोफर का भी है ।
वापस आने पर धरणीधर ने उन दोनों को ढ़ूढंने की बहुत कोशिश की ।
किसी शरणार्थी कैम्प में अहमद उसे मिला भी तो किन हालतों में ?
जब से दंगाई नीलोफर को उसकी आंखों के सामने उठाया वह ना कुछ बोलता है ना सुनता सिर्फ़ बिट- बिट करती आंखों से देखता ।
धरणीधर ने नीलोफर को ढ़ूढंने की बहुत कोशिश की पर उसे नहीं मिलना था वो नहीं मिली ।
अन्त में थक कर धरणीधर भी गांव छोड़ जो बनारस गए तो फिर कभी वापस नहीं गये ।
अभी भी उनके अन्तर्मन को नीलोफर से किए वायदे की खरोंच जब- तब टीस देती है ।
फिर भी वे दुखी नहीं हैं वरन् सुदिन की उम्मीद में हिम्मत बांधे हुऐ हैं ।
अब आगे...
धीरे- धीरे पूरब के आसमान का रंग फीका सा हो गया है ।
दिन भर का शोर -शराबा भी थम चुका है ,
आज धरणीधर की बेचैनी न जाने क्यों उनका जीना मुहाल कर दे रही है ।
अन्त में गाड़ी निकाल वे अनमने से बाहर निकल गए और बेध्यानी में शहर की बदनाम गलियों में जा पंहुचे हैं जहां महजबीं बाई की नाट्यशाला में किसी बड़े जलसे की तैयारी है ।
सारंगिया तथा दूसरे संगत वाले इन्तजार में हैं कुछ ही देर में नाटक , " अभिज्ञान - शाकुंतलम् " की प्रस्तावना चल रही है ।
तभी महजबीं मंच पर प्रकट होती है उसने सर पर झीना सा घूघंट डाल रक्खा है । सबों को बारी - बारी से कोर्निश करती हुयी धरणीधर के पास आ ठिठक कर खड़ी हो गई धरणीधर भी ठुड्ढी पर हांथ रख उसे ही ताके जा रहे हैं नख से शिख तक निहारती उनकी नजरें उसकी नीली आंखों पर जा टिकी ।
वे उठने को तत्पर हुए लेकिन चारो तरफ के माहौल देख फिर शांतचित्त हो बैठ गए । महजबीं भी उन्हें स्निग्ध दृष्टि से देख नाचते - नाचते मंच पर जाते हुए पलट कर फिर देखा इतना यकीन उसे अब तक ना हुआ था ।
धरणीधर ने मन ही मन महफिल खत्म होने के बाद ही उससे तनहाई में मिलना तय किया ।
महजबीं नाटक खत्म होने के बाद लिबास बदल कर आ गई ।
वह इस अचानक हुई मुलाकात से हतप्रभ और संजीदा है।
धरणीधर उसकी बड़ी- बड़ी नीली पनीली आंखे में झांक दोनों बाजुओं से उसे थाम कर बोले ,
" ईमान तुम्हें दे दिया है, नीलोफर बाकी का मुझे पता नहीं तुम्हें मेरे साथ चलना होगा "।
नीलोफर हौले से मुस्कुराई ऐसी दिलफेंक बातें उसके लिए रोजमर्रे की आम बातें हैं ,
फिर गीली आवाज में बोली ,
" कंही तुम्हारा सर तो नहीं घूम गया है धरणी अब मैं नाचने वाली हूं , व्यापार के लेनदेन आसान होगा पर यह सौदा तुम्हें मंहगा पड़ेगा " ।
मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो सपने हमने एक साथ देखे थे ,पर अब जो जिन्दगी मिली है वही सही ।
धरणीधर किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं उसनें नीलोफर को और कस कर भींचते हुए कहा,
"जो गलती हमने की ही नहीं उसकी सजा हमें क्यों मिले ?
नील , " जिन्दगी तो कभी भी किसी की मुक्कमल नहीं होती अगर होती है तो मौत के बाद ही तो हम बस यह सोचे ।
इसे खुशगवार कैसे बनाये मैं आज भी तुम्हारा ही मुरीद हूँ " ।
काश कि हम पहले ना मिले होते तो मैं तुम्हें छोड़ भी देता ।
नील जानती है व्यापार करने वाला धरणीधर और इस वक्त उससे मुहब्बत का इज़हार करने वाला धरणी एक ही है
फिर उस रात के बाद शहर के उस नाट्यशाला के दरवाजे सदा के लिऐ बन्द कर बत्ती गुल कर दी गई ।
फागुनी बयार जो बह चली है...

सीमा वर्मा ©®

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Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत अच्छी कहानी

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत अच्छी.. मर्मस्पर्शी रचना

सीमा वर्मा3 years ago

जी हार्दिक धन्यवाद सर 🙏🏼

दादी की परी
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