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"आधा मुनाफा" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"आधा मुनाफा"

  • 272
  • 7 Min Read

"नैतिकता" आधारित लघुकथा
#शीर्षक

"आधा मुनाफा"
चुनावों का मौसम आ रहा है।
विरासत में मिली नेतागिरी संभालते हुए वृजबासी जी इन दिनों काफी व्यस्त चल रहे हैं।
पिता हरिहर बाबू आजीवन एक क्षेत्र विशेष से विधायक रहे और अब मंत्री पद से रिटायर हो रहे हैं।
आगे गद्दी वृजबासी जी को ही संभालनी है।
लिहाजा नये चुनावी मुद्दे की खोज हेतू उनके विशाल प्रागंण वाले घर में मीटिंग चल रही थी।जो अभी- अभी समाप्त हुई है।
हर तरह की नैतिकता पूर्ण योजनाओं पर विचार-विमर्श के उपरांत ,
सर्व-सम्मति से गरीबों के पुनर्वास के मुद्दे पर प्रस्ताव तय हुआ है।
वृजबासी जी ने घर के पिछवाड़े वाले लम्बी-चौड़ी खाली पड़ी जमीन पर रँग-बिरँगे तिरपाल से ढंके रैनबसेरे बनवा कर गरीबों को दे रखे हैं।
मीटिंग बर्खास्त होने के बाद खान-पान का दौर भी समाप्त हो चला है।
वृजबासी जी सबों को विदा करते हुए सीढियों से नीचे उतर रहे थे कि भीखू पर नजर पड़ गई।
भीखू उसी रैनबसेरे में रहने वाला बूढ़ा रिक्शा वाला है।
वृजबासी जी को देख उसने अपनी अंटी से मुड़े-तुड़े १०० रुपये के नोट निकाल पकड़ाते हुए कहा ,
"लिअऊ मालिकार पिछलै महीनों के बकाया छिअए"।
इतने सारे चेला चपाटियों के बीच घिरे वृजबासी जी पहले तो उसकी बात सुन तमतमा गए।
फिर मौके की नाजुकता समझ झट संभलकर गले में ही थूक घोंटते हुए खिसियानी हँसी हँस कर,
"भाई नफा-नुकसान तो देखना ही पड़ता है भले ही मुनाफा आधा हो ...।
सीमा वर्मा©®

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Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

समसामयिक रचना

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अच्छी रचना

सीमा वर्मा3 years ago

🙏🏼🙏🏼 सर आपकी प्रतिक्रिया मेरे मनोबल बढ़ाती है

दादी की परी
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