कविताअतुकांत कविता
रचनाकार- डा. शिव प्रसाद तिवारी "रहबर क़बीरज़ादा"
मैं वायोर्विद मैं ही चार्वाक
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मैं वायोर्विद,
एक चिकित्सा विज्ञानी-
पुरातन भारत का।
जीवन की उत्पत्ति यहाँ धरती पर,
एक विवादित प्रश्न बन गया जब,
विद्वान विवादों में जब उलझे-
हुये संतापित और उद्वेलित।
मैने भी चिंतन किया,
विचारा, सोचा और मंथन किया,
किया फिर आग्रह।
मैंने जब कहा कि-
जीवन ही जल है,
जीवन तो जलमय है,
जीवन रस है रस जलवत है।
यही जीवन का आधार,
इसे ही जीवन समझो।
जीवन की जननी जल है।
जीवन का हेतु और आधार-
तो केवल जल है।
जीवन का प्रादुर्भाव हुआ है जल से,
ना किसी आध्यात्मिक शक्ति से,
ना ही किसी शक्ति की इच्छा से,
अरे यही तो नव युग के वैज्ञानिक कहते।
सभी तरह के शोध यही प्रतिपादन करते,
और अंततः यही बताते।
जीवन इस धरती पर आया सागर जल से।
नव युग के वैज्ञानिक जब सब बोल पड़े,
फिर सकल जगत ने माना-
और सम्मान दिया,
इसी सत्य को जब था मैंने उचारा-
उस युग में,
सब ने कहा यह मिथ्या है,
है मिथ्याचार एक विद्रोही का।
कहाँ सो गया,
सनातन युग का न्याय भला,
इस वैज्ञानिक सेवा का-
मुझे क्यों नहीं मान मिला।
चार्वाक की कथा तो जग में सर्व विदित है, सभी जानते- चार्वाक का क्या है दर्शन। चार्वाक ने दिया विश्व को ज्ञान सत्य का, वह थे एक अनीश्वरवादी, और स्वभाव से विद्रोही। फलतः दर्शन भी ऐसा गढ़ा। उनका अनीश्वरवाद, बना विद्रोही दर्शन। शायद उनका दर्शन, इस कारण ही- मान्यता पा न सका। और बन गया मानो वैरी चार्वाक का। वो तो थे युग पुरुष, महान परिवर्तनवादी, बस कारण एक यही था, इस दर्शन के प्रतिपादन का। देखो तो- कैसी थी विडम्बना उस युग की। कुछ न बन सका, उनके श्रम का फलकारी परिणाम। मिला था उनको बस अपमान, तिरस्कार अवमान, मिली ना उनको ताली। रह गया एक भिक्षुक का- सदा कमण्डल खाली। ना धन्यवाद, ना पुरस्कार ना मान कोई। अब देखो नव युग की लीला, देखो नवयुग के विज्ञान कर्मियों को। वह सब कैसे शोध कर रहे, देखो शोध धर्मियों को। उसी अनीश्वरवाद पर नये नित मान धर रहे। काम वही कर शोध नया कह श्रेय ले रहे। जग प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग, और बहुत से नाम विश्व में अति प्रसिद्ध। उनसे प्रतिपादित अनीश्वरवाद अब सत्य हो रहा। सारे जग में होके उजागर मान पा रहा। आओ इसकी करो समीक्षा, मुझे- बताओ, चार्वाक का क्या गुनाह था, क्यों उन को ना मान मिला। क्यों उनका ना नाम चला विद्वानों में। क्यों उनका ना नाम आया सरकारों में।
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