कहानीलघुकथा
सरप्राइज
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रचित बहुत दिन से देख रहा था कि मां सीमा फोन पर बात तो करती है पर कहीं कुछ खालीपन सा आवाज में महसूस होता है । पिछले साल से जब से ये महामारी क्या आई सब एक जगह ही सिमट गये । मां पापा दूसरे शहर में ,बहने अलग दूसरे शहर में और वह अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में । बस बात करने का माध्यम वीडियो कालिंग ही है। पापा से उसकी नियम से खूब देर बात होती । पहले मां पापा आते रहते थे वह भी परिवार के साथ जाता रहता था । बच्चे दादी मां से बहुत प्यार करते थे । पापा से उसने कुछ वजह भी पूछनी की कोशिश की पापा ने कुछ उत्तर नहीं दिया ।
बहुत पूछने पर पापा ने कहा कि कुछ मानसिक अवसाद में है। पहले मुझसे हर बात पर गुस्सा होती थी । अब सब चीज पर मौन रहती है। कहती है कितने दिन रहना है क्यों किसी चीज काें मोह करूं और फिर सब अपने में मस्त हैं ।
रचित को सब बात समझ में आगयी कि मांअपने आप को बहुत अकेला समझती हैं । उसने दोनों बहनो से बात की और कोरोना के भय को किनारे कर अपने वाहनों से मां को सरप्राइज देने निकल पड़े। जब तीनों बच्चो सहित अचानक मां के पास पहुँचे । माम पापा एक दम अचम्भित होगये । बहुत दिन बाद सीमा आज बहुत खुश थी। रात को जब सब साथ बैठे तब रचित ने मां से कहा कि अब आप हम लोगो के साथ रहेगी । हम आप दोनों को अकेला नहीं छोड़ेगे । हम से अधिक हमारे बच्चो कोआपकी जरुरत है। सीमा केलिये यह सरप्राइज था कि आज भी सबको उसकी जरूरत है। वह इस अकेले पन के अवसाद से बाहर आयेगी इस दूसरी पीढ़ी को संभालने के लिये और उनके चेहरे पर मुस्कान आगयी और उनके अन्दर उम्मीद की किरण जाग गयी कि हम इस आपदा के अन्धेरेसे दोबारा बाहर आयेंगे । पहले जैसी खुश हाली आयेगी और अंधेरे के बादल छटेगे ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल
बहुत सुन्दर, सुरूचिपूर्ण और प्रेरक..!
Thanks