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वह फूल कांटा ही चुभाता है - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

वह फूल कांटा ही चुभाता है

  • 373
  • 4 Min Read

जब जब
उस फूल के
समीप जाओ
वह कांटा ही
चुभाता है
फितरत है उसकी और
मैं भी अपने हाथों मजबूर कि
मैं बार बार उसके
पास जाती हूं
इस आस में कि
शायद कभी तो
उसमें उम्र के साथ
कोई बदलाव आये
सुधार आये
दिल में प्यार का
कोई एक छोटा सा ही अंश
उभर आये
बहुत हैरानी हुई मुझे
जब एक दिन
वह खुशबू भरे अहसास
उड़ेलने लगा
लेकिन यह सब महज कुछ क्षण के
लिए था
फिर मैं मात खा गई
वह तो एक भ्रम था
यह ऐसा सूरज था
जो उगते ही
पलटी मारकर
डूब जाता था
इसपर विश्वास करना
अब कठिन प्रतीत होने
लगा था
मेरा दिल नहीं मानता
था
मैं अब भी जाती थी
इसके पास पर
कभी कभी
लेकिन सच कहूं
अब मैंने दिल में
किसी भी प्रकार की
उम्मीदें पालना छोड़
दिया था।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आदरणीया रचना प्रतियोगिता में attach नही हुई है

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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माँ
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