कविताअतुकांत कविता
जब जब
उस फूल के
समीप जाओ
वह कांटा ही
चुभाता है
फितरत है उसकी और
मैं भी अपने हाथों मजबूर कि
मैं बार बार उसके
पास जाती हूं
इस आस में कि
शायद कभी तो
उसमें उम्र के साथ
कोई बदलाव आये
सुधार आये
दिल में प्यार का
कोई एक छोटा सा ही अंश
उभर आये
बहुत हैरानी हुई मुझे
जब एक दिन
वह खुशबू भरे अहसास
उड़ेलने लगा
लेकिन यह सब महज कुछ क्षण के
लिए था
फिर मैं मात खा गई
वह तो एक भ्रम था
यह ऐसा सूरज था
जो उगते ही
पलटी मारकर
डूब जाता था
इसपर विश्वास करना
अब कठिन प्रतीत होने
लगा था
मेरा दिल नहीं मानता
था
मैं अब भी जाती थी
इसके पास पर
कभी कभी
लेकिन सच कहूं
अब मैंने दिल में
किसी भी प्रकार की
उम्मीदें पालना छोड़
दिया था।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001