कवितालयबद्ध कविता
मेरे मनवा अब मत रोओ
सुख की बारिश में भिंगोगे
दुख के अब काँटे ना बोओ
मेरे मनवा अब मत रोओ
बीत रही जो रीत रही है
सदियों के दिग्दर्शन से
है आदर्श सामने तेरे
समय के निज अन्तर्मन से
जब काँटों की सेज मिली है
फूलों पर भी सोओगे
धीरज तजकर जीने वाले
तेरा क्या जो खोओगे
क्या क्या पाया क्या खाओगे
इन सबकी दुविधा छोड़ो
मेरे मनवा अब मत रोओ
समय बड़ा बलवान रहा है
किसी की ये क्यूंकर माने
किसी के सिर पर ताज दिया है
किसी ने तेवर पहचाने
किसी से नाता टूट गया
किसी से नाता जोड़ोगे
प्राण पखेरू फूर्र उड़ जाये
कब तक इसे अगोरोगे
जीवन का उद्देश्य समझकर
इसकी पावन नईया मोड़ो
मेरे मनवा अब मत रोओ
रश्मि शर्मा