कविताअतुकांत कविता
चिड़िया
तुम कितनी छोटी सी हो
प्यारी सी हो
भोली भाली सी हो
तुम्हें शायद पता भी नहीं
तुम तो दर्पण में झांककर
खुद को पहचान भी नहीं
पाओगी
मैं अपनी हथेलियों पर
तुमको धर दूंगी तो
मेरे स्पर्श को जान भी नहीं
पाओगी
तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि
तुम गुणों की खान
मेरी जान हो
तुम्हें तो अभी उड़ना भी नहीं
आता
किसी रास्ते पर चलना भी
नहीं आता लेकिन
तुम्हें देखकर मैं
एक फूल सी खिल जाती हूं
इतनी प्रसन्न होती हूं कि
तुम्हें साथ लिये
खुशियों के परों पर बैठकर
सतरंगी सपनों के रंग बिरंगी
आकाश में
एक लहराते पंछी सी उड़
जाती हूं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001