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मैं एक फूल सी कोमल सुकन्या - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मैं एक फूल सी कोमल सुकन्या

  • 275
  • 5 Min Read

पानी की धार भी
किनारे से
किश्ती भी लगी हुई है
लेकिन सोच रही हूं कि
नदी के उस पार
जाऊं या न जाऊं
इस पार भी अकेली
मझधार में भी अकेली
उस पार भी अकेली
उस पार चाहे कोई जंगल हो
हो चाहे उपवन
मैं एक फूल सी कोमल
सुकन्या अकेली
सीढ़ियों पर बैठी हूं
यहीं बैठी रहूंगी
धरातल से
जल की सतह पर
पांव न धरूंगी
मैं अपने दिल को
एक पत्थर की शिला सा
मजबूत करूंगी
एक मछली के चिकने बदन सी
मैं कहीं नहीं फिसलूंगी
नहीं जाऊंगी
मैं इस नदी के पार
चाहे इस जीवन में
होती रहे मेरी हार
नहीं करने मुझे
अपने जीवन के साथ
अनावश्यक प्रयोग
नहीं खेलना इसके साथ
एक खिलौने सा
लेना है इसे गंभीरता से
बरतना है संयम
समझाना है मन के भंवर
को
स्थिर करना है इसे
हलचल का कोई भाव न
उत्पन्न किये बिना
खुद के लिए और
दूसरों के लिए
यह जीवन
हंसते खेलते
जीना है मुझे।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

नमस्कार मीनल जी अच्छा लगा आपको पुनः देखकर आशा है आप स्वस्थ होंगी 🙏🏻

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