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चिर कुमारी... समापन अंक ...
कल आपने पढ़ा पीऊ कालेज की पढ़ाई के लिए बाहर चली गयी है अब आगे ...
जबकि मैत्री वर्दवान में ही रह गई थी ।
शुरू में उसके और अशोक दा के समाचार मिल जाया करते थे । लेकिन फिर बाद में वह सिलसिला भी थमता गया था ।
एक बार फोन पर मासी माँ ने ही बताया मैत्री की शादी हो रही है और यह भी कि उसकी ससुराल वाले करणाल से हैं ।
जब कभी अवकाश होने पर पीऊ घर आती तो मैत्री के घर उसकी मां से मिलने अवश्य जाती ।
लेकिन मैत्री से मिलना फिर बरसों तक नहीं हुआ था हम दोनों की ही दुनिया बदल चुकी थी ।
वह अपने डाक्टर पति के साथ खुश थी और मैं सरकारी राजनायिक पद पर कार्य करती हुयी वर्दमान से निकल कलकत्ते और फिर दिल्ली पंहुच गई हूँ।
अक्सर विदेश के दौरे भी लगाने पड़ जाते हैं।
मासीमाँ अब थकी- थकी सी रहने लगी हैं शायद ढ़लती उम्र और अकेलेपन की वजह से ही ।
मैं भी जल्दी- जल्दी नहीं आ पाती उनसे मिलने तो इस कारण उनकी साज सम्भाल की जिम्मेदारी बड़की जो हमारे घर की बहुत पुरानी कामगार थी ने ही उठा रखी है ।
एक बार जब मैं विदेशी दौरे से लौटी कलकत्ते पंहुची मासीमाँ से मिल उनके साथ अपना जन्म दिन सेलिब्रेट करने । मुझे कहाँ मालूम था वहाँ मेरी जिन्दगी मेरा इन्तजार कर रही है ?
पीऊ के कलकत्ते आने की खबर सुन कल्याणी बहुत खुश है घर में साफ सफाई का दौर चल रहा था ।
बड़की पीऊ के पसंद की तरह-तरह की भोज्य सामग्री तैयार कर रही है ।
इधर कल्याणी सोंच रही है , "
पीऊ अब २९ की हो रही है, इस बार उसके जन्मदिन पर उसे नायाब तोहफा दूंगी " ।
दिन भर की आपा-धापी के पश्चात संध्या बेला में जब दोनों फुर्सत से बैठी तो कल्याणी बोली ,
" पीऊ मैंने तेरा रिश्ता पक्का कर दिया है -- " ।
" रिश्ता कब , किस से और कहाँ "
पीऊ हैरान ,
उतावली हो पूछ उठी ।
तब कल्याणी मुस्कुराते हुए ,
" वही जिसे तू बचपन से चाहती है तेरी सहेली मैत्री का भाई तेरे अशोक दा से "।
पीऊ बह रही वासंती बयार से अछूती नहीं हैरान थे ,
सोच रही है ,
उस प्रकरण को बीते तो अरसा हो गया लेकिन मासीमाँ ने उन पलों को फिर से सजा दिया है ।
अशोक दा के बाद तो उसनें अपने दिल में किसी को भी प्रवेश नहीं करने दिया था ...
" उनके हवा में पीछे उड़ते बाल कितने जाने- पहचाने और अपने से लगते थे "
उनके बाद प्यार के अहसास को उसने सिर्फ फिल्मों और किताबों के जरिए ही जाना है ।
अब उन्ही मीठे क्षणों को जीने की खुशी में पीऊ आकंठ डूब गई ।
पीऊ की चुप्पी को हामी मान कल्याणी ने फिर विवाह की तैयारियां शुरु कर दी थीं ।
अगले लग्न में ही उसके और अशोक के शुभ पाणि - ग्रहण संस्कार सादे समारोह में पूरे कर लिए गए ।
इस बीच एक अजीब बात थी कि सारे वैवाहिक कार्यक्रम में कल्याणी और पीऊ लगभग दोनों ने ही राघव की कमी बहुत शिद्दत से महसूस किया था
आखिर कुछ भी हो वो पीऊ के जनक हैं।
विदा होते वक्त पीऊ को बाबा और मां की कमी बहुत अखरी थी ।
आगे हरि का नाम लेकर पीऊ ने नयी गृहस्थी में कदम रखे ।
जिन्दगी सीधी- सादी पटरियों पर जा रही थी कभी कल्याणी दिल्ली आ जाती तो कभी पीऊ और अशोक कलकत्ते चले जाते ।
इधर कल्याणी कुछ चुप सी रहने लगी है।
बाद के दिनों में पीऊ ने महसूस किया । शायद कल्याणी भी वही चाहती है जो पीऊ की दिली इच्छा है ,
" अब वह अपने बाबा की खोज - खबर ले "
लेकिन संकोच वश पीऊ से कह नहीं पा रही है।
अब इसे संजोग ही समझे वह सुदिन भी जल्द ही आ गया पीऊ को लगभग एक महीने के लिए अमरीका जाने के अवसर प्राप्त हुए ।
तब कल्याणी ने ही कितने जतन कर राघव का पता मालूम किया और बहुत आशा के साथ पीऊ को बताई ।
समुद्र में तट की ओर बढ़ती लहरों के तेज बहाव की तरह ही पीऊ का मन भी बाबा की ओर खिंच रहा था।
राघव से मिलने के बाद पीऊ ने पिता के अन्तर्मन को टटोलते हुए पूछा था ,
" क्या सोंच रहे हो बाबा"
फिर उसके चेहरे को पढ़ते हुए पूछा ,
" एक बात कंहू " ?
" हां कहो "
राघव के मन में अचानक ही अभी -अभी खिले फूलों के बीच कांटे उग आए पीऊ ना जाने क्या पूछ ले ?
पल भर दोनों के बीच निस्तब्धता पसरी रही ।
वाकई उसने समीरा का तिरस्कार किया था ।
इन्सानियत को धत्ता बता कर रूखा या यों कंहे क्रूर व्यवहार किया था ।
तभी पीऊ खिलखिला पड़ी ,
" बाबा तुम्हारी उलझन को देख हिम्मत तो नहीं हो रही ...
फिर भी सोंचती हूं आज तुम्हारे घर चल कर अपने हाथों से चाय बना कर तुम्हें पिलाऊं " ।
अंतस की गहराइयों से निकली ममता की धारा का प्रवाह देख राघव ने इजाजत दे दी ,
" ठीक है चलो "
यह मन है ना बहुत पापी है इसके जाने कितने रूप हैं ।
कहाँ तो वह पीऊ को पहचानने से ही इन्कार कर रहा था ।
और अब पीऊ का साथ उसे कड़ी धूप में ठंडी छांव जैसा अहसास दे रहा है ।
अपने ही खून और रक्त मज्जा से बना हुआ रिश्ते नातों वाले अपनेपन का अहसास उसके दिल में जगह बनाता जा रहा है ।
पीऊ जानती है बाबा अकेले ही रहते हैं और कंही आते- जाते नहीं पर अपनी धरती और अपनी मिट्टी का मोह किसे नहीं खींचता ।
फिर पीऊ के उसे वापस भारत लाने के लगातार चलने वाले प्रयास और प्यार भरे मनुहार ने राघव को भी पिघला कर रख दिया था ।
और शायद यह पीऊ के सद्प्रयास का ही फल है कि आत्मग्लानि के बोझ तले डूबे राघव के विदेश में ही,
अजनबियों के ही बीच मृत्यु गति को प्राप्त करने की इच्छा वाले चट्टान से अटल इरादों की भी दिशा बदलने में पीऊ कामयाब हो गई थी ।
यह जान कर कल्याणी भी सहज संतुष्ट भाव से अपनी बची हुई जीवन यात्रा निभाने में जुट गई है ।
इति श्री...
सीमा वर्मा ©®
यह सत्यकथा लग रही है सच कहूं। तो लग रहा है कि इस कथा पर अभी और काम की जरूरत है। इसे और कसकर निखारने की जरूरत है। प्लाट बेहतरीन है। समय मिले तो इसे थोड़ा समय और दीजियेगा। 😊🙏🏻
जी हार्दिक धन्यवाद आपका और आपकी पकड़ का ।विशेष क्या ही कहना ,कहानियां तो हमारे आस-पास ही बिखरी होती हैं आवश्यकता है बस उन्हें सहेजने की। हाँ और समय देने की बात तो मनगढ़त हो जाएगी नेहा जी फिर उसमें वह आनंद कहाँ मिलेगा ?अब जो कंही देखा वही थोड़े उतार चढ़ा से पन्नों पर उतार दिया 😀🙏🏼