कविताबाल कविता
माँ की रोटी मोटी मोटी
कितनी मीठी कितनी सोंधी
देखकर इसको जी ललचाए
घरवालों के मन को भाये
पूछूं इसको कैसे बनाती ?
इसमें ऐसा क्या हो मिलाती?
अच्छा !! समझी तेरी माया
इसमें अपना प्यार मिलाया
थाली में रख चुपड़ी रोटी
जब जब हमें खिलाती हो
खाने के सारे सुख मैया
तुमही मन मैं पाती हो