Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँ

चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐💐

  • 211
  • 14 Min Read

#शीर्षक
चिरकुमारी...कल्याणी राए 💐💐
अंक ५

मित्रों कल आपने पढ़ा समीरा और नन्हीं पीऊ को छोड़े राघव विदेश की राह पकड़ लेता है ।
आज सुनते हैं पीऊ की कहानी उस की जुबानी ...

मैं जब बहुत छोटी थी तभी मां को किसी गम्भीर रोग ने जकड़ लिया था ।
पहले तो माँ ने ध्यान नहीं दिया बाद में जब हालत एकदम से बिगड़ी तो बकौल काकू ,
" उनका बचना मुश्किल है "
यही अक्सर सुनने को मिला था मुझे ।
उन दिनों मां को इलाज के लिए अक्सर बाहर जाना होता था और काकू का आना-जाना हमारे घर काफी बढ़ गया था।
ऐसी उम्र में जब बच्चे अपनी जरूरतों के लिए औरों पर निर्भर रहते हैं मैं रात-रात भर जाग कर माँ के लौटने का इन्तजार किया करती थी ।
लेकिन माँ से कुछ ना कह पाने की स्थिति में मैं अन्तरमुखी हो गई थी ।

कभी- कभी कल्याणी मासी भी आ जाती माँ से मिलने वे मुझे बहुत प्यारी लगतीं ,
उनके लम्बे काले बाल जिसे वे हल्के से मोड़ कर क्लिप के सहारे उन्हें खुला छोड़ देतीं।
जब कभी माँ और मासी आपस में गुपचुप बातें करती मैं सामने बैठ कर सुना करती उनके मुलायम से पर्स से खेलती हुयी ।
फिर माँ के मरने के बाद तो जिन्दगी ही बदल गई थी ।
मासी माँ के साथ उनके घर रहने आ गई थी मैं जहाँ मैत्री ही मेरी एकमात्र सहेली बन पाई थी।
वहाँ हमारे क्वार्टर का हाता बहुत बड़ा था मैत्री और मेरे घर के बीच पक्की दीवार नहीं थी सिर्फ करौंदे की कंटीली झारियों की लम्बी कतारें हुआ करती थी।
उन्हीं झारियों के बीच से छिलती हुयी मैं उसके घर चली जाती मैत्री हमारे घर कम आती ।
वे लोग अग्रवाल थे उसके यहां प्याज लहसुन भी नहीं चलता जब कि हमारे यहां बिना गोश्त , मच्छी के एक दिन भी नहीं जाता ।
खैर वंही उसके घर अशोक दा से मुलाकात हुयी थी ,
बेहद संजीदा किस्म के थे वे घर के सामने वाली सुनसान सड़क पर अक्सर साईकिल चलाते मिल जाया करते।
मैं कनखियों से देखती किस कदर हवा से उनकी आसमानी रंग की कमीज फूल जाती और थोड़े लम्बे बाल हवा में पीछे बहते ।
उन दिनों मुझे हर बात पर हंसी आती ।
लेकिन इसके पहले कि मेरे दिल में किसी भी तरह के जज्बात पनपते ,
मासीमां की तीक्ष्ण नजरों ने मेरे मन में छिपे दबे चोर को पहचान लिया था ।
वह शायद फिर से किसी प्रेम कथा की पुनरावृत्ति नहीं चाहती थीं।
मैं सोचती ,
कभी- कभी परिणाम के बारे में पहले से ही पता होना कितना दुश्वार हो जाता है कि मत पूछें ।
इस सन्दर्भ में वे बर्फ की सिला जैसी कठोर थीं शायद मेरे और अशोक दा दोनों ही के मन में प्रस्फुटित प्रेम के अंकुर को पहचान उसे पनपने देना नहीं चाहती थीं ।
उनके अनुसार अभी मेरे पढ़ - लिख कर कैरियर बनाने के दिन थे ।
तब बारहंवी के इम्तेहान की बाद वाली छुट्टियां चल रही थीं ।
वे मुझे अपने साथ लेकर अक्सर ही कभी इधर- उधर घूमने निकल जाया करतीं और फिर हम शाम ढ़ले ही वापस लौटते ।
प्रारंभ में मेरा मन घर की पीछे वाली गली में ही भटकता रहता।
लेकिन फिर धीरे-धीरे वे सारे अक्श धूमिल होने लग गई थी ।
रिजल्ट निकल जाने के बाद मेरा नामांकन कलकत्ते के जादव पुर विश्व विद्यालय में मासी माँ ने करवा दिया था।
और मैं हर यादों के साए को सीने में दफन कर आगे बढ़ गई थी।
क्रमशः ...
सीमा वर्मा ©®

FB_IMG_1620214726382_1620574460.jpg
user-image
नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

आपकी लेखनी बहुत अलग है कहानी इस प्रकार भी लिखी जा सकती है। यह पहली बार जाना। बहुत सुंदर जा रही है कहानी अब अगले भाग का इंतज़ार है।

सीमा वर्मा4 years ago

वास्तविक की धरातल पर है आपका बेहद शुक्रिया नेहाजी

सीमा वर्मा4 years ago

ओह इतनी अच्छी प्रतिक्रिया नेहा जी कल्पना नहीं की थी लेकिन यह तो वास

दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG