कवितालयबद्ध कविता
एक नन्ही-मुन्नी अभिलाषा
एक कौतूहल, एक जिज्ञासा ने
अधजगी,अधखुली आँखों से
एक दृश्य सुनहरा देखा है
इस दुनिया में सबसे पहले
माँ का चेहरा देखा है
दो नन्हे होंठों से जन्मी
सबसे पहली तुतली सी भाषा
ममता के आँचल में सिमटी
सर्वस्व त्याग की परिभाषा
जिसकी ममता की गोदी ने
धरती का एक अहसास दिया
जिसके आँचल की.छाया ने
मुझको एक आकाश दिया
ममता के ब्रह्म - कमंडल से
छलकी सी एक देवसरिता
संतप्त हृदय को सींचती सी
स्नेह की एक दिव्य कविता
अभयदान सा देती पल-पल
दो बाँहों के झूले में
एक नया सवेरा देखा है
इस दुनिया में सबसे पहले
माँ का चेहरा देखा है
तेरी कोख बनी मेरा उद्गम
थपकियाँ ममता का सरगम
मधुर भाव, शुभचिंतन,अद्भुत चेतना का
मन तेरा है पावन दिव्य त्रिवेणी संगम
तेरे दूध का एक-एक कण
बनकर रक्त दौड़ता क्षण-क्षण
आजीवन ऋण की अनुभूति
बना हृदय का हर स्पंदन
इन गंगा-जमुना सी छलकती आँखों में
संवेदना का सागर गहरा देखा है
इस दुनिया में सबसे पहले
माँ का चेहरा देखा है
ममता बनकर घर-आँगन के
कण-कण में बिखरती माँ
बन यशोदा, जीजाबाई,
पन्ना धाय निखरती माँ
कभी झिड़कती, डाँटती, फटकारती माँ
और फिर पुचकारती, दुलारती माँ
ढालकर संस्कार के साँचे में
हमको यूँ सँवारती माँ
लगती मस्जिद की अजान सी
मन-मंदिर की आरती माँ
चैतन्य-दीप से आलोकित
इस वात्सल्य के मंदिर में
प्रभु का बसेरा देखा है
इस दुनिया में सबसे पहले
माँ का चेहरा देखा है
द्वारा: सुधीर अधीर