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महल और झोपड़ी - Amrita Pandey (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

महल और झोपड़ी

  • 228
  • 5 Min Read

ये महलनुमा अट्टालिकाएं, बड़े-बड़े झरोखे
मगर सब बंद पड़े हैं, हर कमरे में ए सी जो लगे हैं।
ये छोटी-छोटी झोपड़ियां, घास फूस और लट्ठों से बनी हुई
छोटे-छोटे झरोखे सांस लेने के वास्ते
जहां बेधड़क आते जाते हैं हवा के ताजे झोंके
मासूम गालों को सहलाने......

यह महल सुनसान पड़े हैं सूरज के निकलने तक
क्योंकि ये देर तक जगते हैं रात में
सुबह सवेरे ही हलचल हो जाती है इन झोपड़ियों में
मुर्गे की बांग, गाय का रंभाना
आंगन में सूरजमुखी का खिल जाना
इंसानों का काम में जुट जाना......

ये महलों के शहजादों का देर से आना रात को
झोपड़ी के लालों का लालटेन की रोशनी में
ज्ञान की अलख जगाना रात को
महल में नई बहू का दहेज के लिए उत्पीड़न, अत्याचार
उधर झोपड़ी में नई बहू का झंडियों और पतंगों से सत्कार
देखा है मैंने........

इधर छोटी-छोटी बात पर तनाव और तकरार
उधर उन्मुक्त मुस्कान, सिर्फ दाल रोटी की दरकार
रेशमी लिबासों में उदासी, चीथड़ो में मुस्कान
क्या देखी है आपने....?
अब तो आप भी मानेंगे ना कि
ये धनदौलत, ऐश्वर्य, महल मात्र
खुशी का पैमाना नहीं हो सकते......?

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत ही खूबसूरत सृजन,कोई मुकाबला नहीं महल और झोंपड़ी में, जहां तक खुशियों का ताल्लुक है।

Amrita Pandey3 years ago

जी धन्यवाद, सही बात

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