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नजरिया - Jagruti Tiwari (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

नजरिया

  • 331
  • 6 Min Read

शीर्षक-"नजरिया"

"देख बेटा आज एक बार फिर से तू गुप्ताजी को फोन करके याद दिला दे कि कन्या भोज का समान आज रात तक भिजवा ही दे जिससे सुबह जल्दी अपन कन्याभोज शुरू कर दे और उनको कहना कि सारा समान बाँटने के लिये ही चाहिए है तो ज्यादा क्वालिटी के चक्कर में ना पड़े वैसे भी देना तो बाईयों के बच्चों को है उनको कहाँ ये सब समझता है, बस समान दिखने में ज्यादा होना चाहिए"-रेणुकाजी अपनी बहू को निर्देश दे ही रही थी कि तभी उनके घर में काम करने वाली विमला आकर बोली-"मम्मीजी मेरे घर मेहमान आ गए तो मैं बाज़ार नहीं जा पाई और नवमी पर मैं अपने पड़ोस के बच्चों को थोड़ा कुछ समान बाॅट देती थी अब काम करते करते ही शाम हो जायेगी आप मेरी एक मदद कर देंगी क्या?" उसकी आशा भरी नज़ारों को देखते हुए ना चाहने पर भी रेणुकाजी को बोलना पड़ा-"अब तू बता तो सही फिर देखती हूँ क्या कर सकती हूँ।"
विमला की तो जैसे मुराद पूरी हो गई झट से आंचल मे बाँधे पैसे निकाल कर बोली-"आप तो गुप्ताजी से समान घर पर बुला लेती है, इन पैसे से आप कुछ अच्छा सा मँगवा देना बच्चों को देने के लिए, कुछ ऐसा जिसे बच्चे खूब खुश होकर उपयोग कर सके यदि ये पैसे कम भी पड़े तो मैं आपको अगले हफ्ते चुका दूंगी।"
पैसे देकर विमला तो अपने काम में लग गई लेकिन अब दोनों सास-बहू एक दूसरे से नज़रे चुरा रही थी।

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

अच्छी लघुकथा

Jagruti Tiwari3 years ago

जी धन्यवाद

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बढ़िया कहानी।

Jagruti Tiwari3 years ago

धन्यवाद

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