कहानीलघुकथा
#शीर्षक#
फूलवाली लड़की...
रोज शाम पांच बजे घर से निकल नीरजा रोड के उस पार वाले फूल की दुकान से अपनी व्हील चेयर पर आश्रित बिटिया रिम्मी के साथ जा कर फूल खरीदना नहीं भूलती है ।
यों की नीरजा घर के कार्य से थकी हुयी होती है फिर भी उस दुकान में ताजे फूलों के बीच बैठी हुयी लड़की जिसकी उम्र १४ के करीब की होगी को कुशलतापूर्वक दुकान का संचालन करते देखना उसे और रिम्मी दोनों को ही बेहद अच्छा लगता है ।
उसे देखने के बाद नीरजा का जीवन के प्रति नजरिया बदलने लगता है।
एक दिन उसने ध्यान से देखा कि ताजे फूलों के बीच मोतियों जैसे अक्षर में सुविचार लिखें हैं ,
" ईश्वर को मत बताओ कि मेरी तकलीफ कितनी बड़ी है ।
तकलीफ को बताओ मेरा ईश्वर कितना बड़ा है " ।
और वह लड़की अपने छोटे भाई के साथ फूलों के बीच बैठी रहती है ।
उसकी मोहक ताजी मुस्कान नीरजा की दिन भर की थकान दूर कर उसे तरोताजा कर देते हैं।
रोजाना की तरह आज भी दुकान से थोड़ी दूर पहले ही गाड़ी रोक शीशे को नीचे कर नीरजा ने १०० रुपये के नोट बढ़ा दिये ।
अक्सर दुकान से लड़की का छोटा भाई दौड़ कर उसकी मनपंसद पीले फूलों का गुच्छा पकड़ा जाता है ।
लेकिन आज वह कंही नजर नहीं आ रहा है ।
थोड़े इन्तजार कर नीरजा ने कार के शीशे को थोड़ा नीचे झुका उस फूल वाली लड़की जिसके चेहरे पर सलोनी मुस्कान खेल रही है ,
से मीठी आवाज में पूछा , " आज गुड्डू नहीं आया है क्या " ?
" नहीं आंटी जी अब वो नहीं आएगा , स्कूल जाने लगा है ना आप रुकें मैं अभी ला रही हूँ आपकी मनपसंद के फूल " ।
नीरजा और रिम्मी दोनो गाड़ी में ही बैठी इन्तजार करने लगी ।
कुछ देर में ठक-ठक की आवाज से उसने सर उठा कर देखा तो चकित रह गई ।
सुंदर फूलों की दुकान और इतने सुंदर विचार संजोने वाली वाली वह खुश दिल लड़की विकलांग तो है ।
मगर जिजीविषा से भरपूर है ।
उसने बगल की सीट पर बैठी अपनी बेटी रिम्मी का अशक्त और असमर्थ चेहरा देखा ।
जिसे अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए नीरजा ने लाचार बना रखा है ।
बड़े से गुलदस्ते को उठाये हुए एक पांव पर बैसाखी के सहारे कूद-कूद कर चलती हुई वह फूलवाली लड़की उसकी गाड़ी के समीप आ कर मुस्कुराती हुयी खड़ी हो गई ,
" यह लो आंटी जी अपनी मनपसंद के पीले गुलाब "
नीरजा उसकी जीवटता देख हक्की - बक्की है ।
वो उसे रोक उसके दर्द भरे जीवन के बारे में जान करुणा से भर जाती है ।
लेकिन उस फूलवाली को अपने लिए दया या करुणा नहीं चाहिये ।
वह तो अपने जीवन को एक चुनौती के रूप में लेती है ।
उसकी पीठ प्यार से थपथपाती हुयी नीरजा एक पैर से लाचार होने के बावजूद जिजीविषा से लवरेज उसकी आत्मशक्ति को मन ही मन नमन कर रही होती है ।
कि किस तरह वह इन ताजे फूलों वाले सुगंधित विचार से अपनी अपगंता को नकार कर कर्म साधती हुयी ना सिर्फ़ अपना जीवन उत्साह से भर रही वरन् अपने परिवार का भरण -पोषण करती हुयी उसे आगे भी बढ़ा रही है ।
उसके जीवन के प्रति साकारात्मक रवैये से प्रभावित और उसकी कर्मशील जीवटता को देख नीरजा
अपनी बिटिया रिम्मी के पांव की अपंगता को चुनौती के रूप में स्वीकार कर उसका सामना नये ढ़ंग से करने की सोच रही है ।
सीमा वर्मा
seema.anjani07@gmail.com