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बेचो डिग्रियाँ - Pratik Prabhakar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बेचो डिग्रियाँ

  • 204
  • 3 Min Read

बेच डालो डिग्रियाँ
खरीदारों की कमी नहीं
वो आँख क्या हँसते
जिनमें होती नमी नहीं।।


बेच डाला ही खुद को
अब जमीर भी तो मर गया ।
बताओ शिक्षा के ठेकेदार
गढ़ोगे क्या किरदार नया।।


मोहपाश में लिपटे हो
एक दिन यह मोह भंग होगा।
जब कलंकित चेहरा
सरेआम यहाँ बदरंग होगा।।

खूब लुटे सरकार को
जनता तेरे चौखट पर रोती है।
याद रखना शिक्षा माफ़िया
हर ज़ुल्म की क़ीमत होती है।।


जब लोग बसूलेंगे तुमसे
तुम पछताओगे, चिल्लाओगे।
नज़रों में गिरोगे खुद के
तब हरिगुण ही बस गाओगे।।


✍️प्रतीक प्रभाकर

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब यह लिखना भी जरूरी है। 👌🏻 बेबाक लेखन जगाने के लिए जरूरी हो जाता है बहुत बार

Pratik Prabhakar3 years ago

जी बहुत आभार

प्रपोजल
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माँ
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वो चांद आज आना
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तन्हाई
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