कवितालयबद्ध कविता
बेच डालो डिग्रियाँ
खरीदारों की कमी नहीं
वो आँख क्या हँसते
जिनमें होती नमी नहीं।।
बेच डाला ही खुद को
अब जमीर भी तो मर गया ।
बताओ शिक्षा के ठेकेदार
गढ़ोगे क्या किरदार नया।।
मोहपाश में लिपटे हो
एक दिन यह मोह भंग होगा।
जब कलंकित चेहरा
सरेआम यहाँ बदरंग होगा।।
खूब लुटे सरकार को
जनता तेरे चौखट पर रोती है।
याद रखना शिक्षा माफ़िया
हर ज़ुल्म की क़ीमत होती है।।
जब लोग बसूलेंगे तुमसे
तुम पछताओगे, चिल्लाओगे।
नज़रों में गिरोगे खुद के
तब हरिगुण ही बस गाओगे।।
✍️प्रतीक प्रभाकर
बहुत खूब यह लिखना भी जरूरी है। 👌🏻 बेबाक लेखन जगाने के लिए जरूरी हो जाता है बहुत बार
जी बहुत आभार