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झोपड़ी और महल - भुवनेश्वर चौरसिया भुनेश (Sahitya Arpan)

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झोपड़ी और महल

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लघु आलेख साहित्य अर्पण एक पहल दैनिक लेखन प्रतियोगिता के लिए।
झोपड़ी और महल
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उस मोहल्ले में झोपड़ी और महल दोनों आसपास ही बिराजमान थे जिनमें भले और बुरे दोनों तरह के लोग रहते थे।
महल वालों की शानो-शौकत में कोई कमी नहीं थी जरा सी कहीं भी टूट फूट होती महल वाले लोग राज मिस्त्री बुलाते और ठीक करबा देते।
लेकिन झोपड़ी के साथ ऐसा कुछ नहीं होता था, क्योंकि झोपड़ी में रहने वाले लोगों का अपना पेट ही मुश्किल से भरता था।
वे बरसात के दिनों में पानी टपकते हुए भी उन्हीं झोपड़ी के अंदर दुबके रहते थे।मानो जैसे कोई छोटा मोटा घाव हो जो पककर और फूट कर कुछ दिनों में बह कर ठीक हो जाएगा।
झोपड़ी की जिंदगी ऐसे ही घिसटते हुए कट रही थी। तो महल अपनी खुशहाली पर इतराता था।
एक दिन अचानक ही बहुत तेज भूकंप का झटका आया तो झोपड़ी और महल दोनों एक साथ हिल गया।
झोपड़ी के अंदर थोड़े बहुत लोग थे जो कि जल्दी ही अपना बोरिया बिस्तर समेट भाग खड़े हुए।
दूसरी तरफ उस आलीशान महल में बहुत सारे लोग अलग-अलग कमरों में एक साथ रहते थे। गाड़ी घोड़े नौकर चाकर का अंबार लगा था। ठेकेदार की या महल के मालिक की कमी कहें जो कि महल बनाने में राॅ मैटेरियल ढंग का नहीं लगाया था जिससे महल बहुत कमजोर था हालांकि खूबसूरती में कोई कमी नहीं थी।
भूकंप का झटका सह न सका और एकदम से चड़मरा कर गिर गया। कुछ लोग बच गए कुछ मारे गए बहुत भारी जानमाल का नुक्सान हुआ।
झोपड़ी अब भी जस के तस खड़ा था और उनमें रहने वाले लोग महल में रहने वाले लोगों को बचाने में जुटे हुए थे। भोजन भात दवा दारू सब अभी उनके ही जिम्मे था।
महल से अधिक भाग्यशाली होता है झोपड़ी जिनमें रहने वाले लोग दया कि प्रतिमूर्ति होते हैं। जबकि महल में रहने वाले लोग अत्यधिक घमंडी और चिड़चिड़े।
इसलिए जीवन में सादगी से रहना चाहिए सक्षम हैं तभी महल का ख्वाब देखना चाहिए अन्यथा मनुष्य के रहने के लिए झोपड़ी ही काफी है।
©भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

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Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 4 years ago

बेहद संदेशपरक आलेख

समीक्षा
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