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अब जाग ए इन्सान। - Amrita Pandey (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

अब जाग ए इन्सान।

  • 234
  • 6 Min Read

अब जाग इंसान।

फिर पतंग उड़ने लगी हैं आसमान में
बच्चे दिखने लगे फिर ज़रा परेशान से,
स्कूल जाने की उम्मीद धूमिल होने लगी
आना जाना कहीं नहीं,बस कैद हो गए घर में।

फिर कर्फ्यू लगने लगा है शाम से
सलामती की आवाज़ आने लगी अज़ान से,
एक साल बीता था जो दुश्वारी का
अंत नहीं हुआ अभी उस बीमारी का।

इतिहास फिर स्वयं को दोहरा रहा है
जीवन और मौत का अंतर घटता जा रहा है,
सांस लेना दूभर हुवा, जहरीली बहुत हवा है
धैर्य और सावधानी अब सबसे बड़ी दवा है।

एंबुलेंस के हॉर्न दिन रात बजने लगे हैं
टेलीफोन की घंटी से हम डरने लगे हैं,
दवाओं के दाम छूने चले आसमान
इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे इंसान।

कालाबाजारी का नग्न मंजर
यातनाओं का चुभता खंजर है,
इंसा तो इंसां है,क्या जाना क्या अंजान
देख देख लाखों अर्थी रो उठे शमशान हैं।


चुनाव है रैलियां हैं, भीड़ भाड़ है,मेला है
आम आदमी ठगा हुआ सा भीड़ में अकेला है,
हर तरफ चीख-पुकार, हृदय विदारक चीत्कार
बहुत सिक गईं रोटी अपनी, अब जनता की सुनो पुकार।

जनता भी स्वयं मर्यादित हो, नियम कायदों का रखे ध्यान
मास्क लगाए, दूरी बख्शे, रखें संयमित खानपान,
जीवनदायिनी हवा का महत्व आज समझ आया है
वृक्ष लगाए जगह-जगह,  हरियाली संरक्षित हो।

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Amrita Pandey

Amrita Pandey 3 years ago

सर धन्यवाद।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

आज की वास्तविकता दर्शाती.. अच्छी रचना..!

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