कहानीहास्य व्यंग्य
एक बार फिर से हम मुसीबत में फँस चुके थे। वो भी इन जिज्जी की वजह से। वो इसलिये की जिज्जी ने फोन कर भानु को सब बता दिया था। कसम से बता रहे हैं, बहुत पहुंची हुई चीज है, ये जिज्जी....। हमारे तन- बदन में तो जैसे आग लग गयी थी। हम भी रसोई घर में जाकर कड़छी, चमचा, बेलन सब इकट्ठा कर, जंग की तैयारी में लग गए। पर फायदा क्या??? यही सोचकर वापस भानु के सामने मुजरिम की तरह आकर खड़े हो गए। भानु तिलमिलाए हुए, बोले जा रहे थे
“ जिज्जी होशियार नही है, पर तुम तो होशियार हो, पढ़ी लिखी हो थोड़ा समझदारी से काम नही कर सकती थी”।
दिमाग को शांत कर हमने, अपनी बातों की कड़छी भानु के गुस्से की कढ़ाही में चला दी।
“डिग्रियाँ मिलते वक़्त मालूम नही था ना कि जिज्जी को हैंडल कैसे करना है। मालूम होता तो पूछ लेते प्रोफेसर से.....”
अब कढ़ाही मतलब भानु हमें थोड़ा शांत दिख रहे थे हम अपनी बात को घुमाते हुए आगे बोल पड़े-
“आपके पसन्द का खाना बनाये थे। अब आप खाओगे तो हो नही क्योंकि गुस्से से पेट भर गया होगा आपका”।
कहकर हम बैडरूम की तरफ बढ़ चले। भानु को लगा घर में क्लेश करने से अच्छा है मामला मिलकर सुलझाया जाये। भानु शशि को आवाज लगाकर बोलता है अच्छा सुनो।
“भूख लगी है खाना लगा दो”।
शशि मन ही मन खुश होती हुई प्रेमपूर्वक खाना लगा लायी। खाने का एक कौर मुँह में डाला ही था कि डोर बेल बजी। दरवाजा खोला तो जिज्जी के बच्चे खड़े थे। अंदर आते हुए पूरे घर मे झांकते हुए बोले
“मामी माँ ने दही के लिये जामन मंगाया है”।
शशि ने जामन देकर बच्चो को विदा किया। भानु ने तुरन्त से कटाक्ष कर बोला
“जिज्जी का दिमाग बड़ा चलता है। मतलब! घर मे क्या चल रहा है? देखने को बच्चों को भेज दिया"।
सच कह रहा हूँ शशि बहन नही होती ना तो आज बहुत कुछ कहकर आता परन्तु चुप हूँ तो घर की इज़्ज़त की वजह से माँ के वचन से वचनबद्ध हूँ”। कहकर भानु हाथ धोने को चले गये। और हम सोच रहे थे भानु जिज्जी जैसे होते तो हमारी जीवनरूपी लुटिया गंगाजी में डूबकर आत्महत्या कर लेती कब की।-नेहा शर्मा