कवितालयबद्ध कविता
आयी चिड़िया, आयी चिड़िया
दाना चुगने आयी चिड़िया
सबके मन को भायी चिड़िया
सबके मन पर छायी चिड़िया
किस्मत की झोली से
बिखरा एक-एक दाना
बाबुल के घर-आँगन
चुगने आयी चिड़िया
घर की बंद कोठरी को
एक हरा-भरा और खुला-खुला
एक पुरवाई सा खुशनुमा
एक मनभावन सा आँगन
देने आयी चिड़िया
पलकों के साये में पलते
भीने-भीने से सपनों का
अद्भुत ताना-बाना
बुनने आयी चिड़िया
सुरमई आँखों के सतरंगी सपनों में
कल्पना के पंख लगाकर उड़ती चिड़िया
फिर धीरे-धीरे नियति की पगडण्डी के
सब मोड़ों पर चुपके-चुपके मुड़ती चिड़िया
धीरे-धीरे एक-एक करके आजादी के
सब पंखों को बरबस खोती जाती चिड़िया
इस आँगन से उस आँगन तक
इस खूँटे से उस खूँटे तक
एक निरीह सी गाय
होती जाती चिड़िया
निष्ठुर समाज का सबसे निर्मम
न्याय ढोती जाती चिड़िया
बेटी बनकर पैदा
होने के गुनाह की
चुपके-चुपके हर सजा को
मानो ढोती जाती चिड़िया
पहले पिता का अनुशासन
फिर ससुराल का कड़ा शासन
इन सबके हाथों सधी-बँधी
दायित्वों से लदी-फँदी
और कभी तो निर्मम
दुःशासन के हाथों
चीर हरण करवाती
बरबस छली-ठगी
मिथ्या आरोपों के
निर्मम फंदों पर
निर्दोष जानकी सी
जाने क्यों टँगी-टँगी
मगर कभी लक्ष्मीबाई
और कभी जीजाबाई
शक्तिस्वरूपा इंदिरा बनकर
चेतना की हर आहट से जगी-जगी
तू धरती पर मदर टेरेसा
और मरियम है
नभ में सुनीता विलियम है
शैलपुत्री, कालरात्रि,
महागौरी,सिद्धिदात्री
हर रूप तेरा,
माँ,अनुपम है
आँचल में है दूध,
नयन में नीर है
सिमटी मन की परतों में
ना जाने कितनी पीड़ है
फिर भी जीवन के पंछी का
तू स्नेह भरा एक नीड़ है
माँ, बहन, पत्नी, बेटी और बहू
हाँ, अपने हर रूप में तू
घर, समाज, परिवार, देश की
एक मजबूत रीढ़ है
तू उमा,रमा, तू शारदा है
शक्तिस्वरूपा मंगला है
अबला नहीं, तू सबला है
अन्नपूर्णा धरती सी
सुजला,सुफला है
हर रूप में तू बड़ी है
जीवन के हर दोराहे पर
संकल्प बनकर खड़ी है
घर-आँगन में सिमटे इन सब
संबंधों की माला की
सबसे अटूट,
सबसे मजबूत कड़ी है
तेरे त्याग-बलिदान की,
अद्भुत योगदान की
बुनियाद पर
इस जिंंदगी की
आलीशान सी
इमारत खड़ी है
द्वारा: सुधीर शर्मा