Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
स्वयंसिद्धा - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

स्वयंसिद्धा

  • 188
  • 3 Min Read

स्वयंसिद्धा

इतनी विषम परिस्थितियों में भी कात्यायनी अपनी सहज मुस्कान को विदा नही करती थी। अपार सहनशील, भारतीय संस्कृति की महान रक्षक, अपने रिवाजों, गृह कार्यों, जिम्मेदारियों को मजबूती से पकड़कर रखने वाली दुर्गास्वरूपिणी स्वयंसिद्धा। ईश्वर भी एक बार सोच रहा था निष्काम कर्म में निमग्न ये स्त्री रोज़ हाथ उठा कर सबके लिए दुआएं मांगती है और तारें टूटते हैं लेकिन वो तारा कब टूटेगा जब ये खुद के लिए कुछ मांगेगी?

अनुजीत इकबाल
लखनऊ

IMG_20210403_002502_1618298281.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG