कविताअन्य
मैं आज़ाद हिंदुस्तान की एक कहानी हूं
सींचते हो अपने खेतों को जिससे
हां मैं वही पानी हूं
कर रहे हो टुकड़े मेरे
बांट रहे हो मुझे भागों में
एक चादर सी थी मैं सुकून की कभी
क्यों बदल रहे हो मुझे धागों में
एक आकार था मेरा कभी
अब मेरी तस्वीर बनाना आसान नहीं
खुले आसमान के नीचे दौड़ा करते थे बच्चे कभी
शायद अब मेरे पास वो खुले मैदान नहीं
जहां खेती हुआ करती थी कभी
वहां अब हो रहे है जंग
हैरान है जानकर दुनिया भी
क्यों लोग बदल लेते है अपने रंग
हर हिस्सा मेरा अब ज़ख्मी है
हर सोच मेरी अब घायल है
क्यों बांट रहे हो मुझे
क्यों हर चीज़ मेरे बंटवारे पर कायल है
अब बस कर दो इन बातों को
जो बांट रहे हैं मेरे शरीर को
कुछ ढील तुम भी दे दो कुछ जिद्द तुम भी छोड़ो
जिनका सुलह नही कर सकते वो चीज़ें दे दोना फकीर को
मत करो मेरे हिस्से अब और
क्या रखा है जाति धर्म में
इनके आधार पर कोई बड़ा या छोटा नही होता
अब छोड़ दो रहना इस भ्रम में
मत काटो मेरे पंख
मैं तो सोन चिरैया हूं
भारत मां तो मैं हूं ही सबकी
बस एक बार कह दो कि मैं भी एक प्यारी सी बिटिया हूं
मत रंगो मुझे अब और
अपनी सोच की स्याही से
थक चुकी हूं अब मैं
हो सके तो मेरी प्यास बुझा देना अमन की सुराही से
मुझे दफन मत करना कभी
पंजाब के उन खेतों में
कही मैं फिर से न हरी भरी जो जाऊं
जाके उन हाथों में
क्या मेरा सच में कोई अस्तित्व बचा है
या नदियों को छोड़ सागर में मिलता है जो
मैं बस वो खरा पानी हूं
हां मैं आज़ाद भारत की आवाज थी अब तक
पर क्या मैं सच में अब भी आज़ाद हिंदुस्तान की कहानी हूं
कौन हूं मैं?
बहुत सुंदर रचना है। थोड़ी बहुत टंकण त्रुटियाँ है। वह देख लीजियेगा। बाँट, तस्वीर, अब हो रही है जंग, स्याही, जिनकी सुलह, दो ना, बंटवारे,
धन्यवाद आपका, जी बिलकुल :)