कहानीलघुकथा
फर्ज---
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सीमा बहुत देर से अपनी काम वाली पुनिया का इन्तजार कर रही थी । पुनिया उसके यहाँ 25 साल से काम करती थी । वह उसकी बहुत विश्वसनीय थी क्योंकि उसके सुख दुख में हमेशा परिवार के सदस्य की तरह उसे सहारा दिया था । जब उसकी बेटी मिताली का प्रसव के समय देहान्त हो गया था । वह पूरी तरह बिखर गयी थी क्योंकि मिताली उसकी इकलौती संतान थी । उसके साथ साथ नवजात शिशु भी विदा हो गया था । उस समय पुनिया ने एक बहन की तरह उसे संभाला था ।
अचानक बाहर दरवाजा खुला देखा पुनिया का पति राम चन्द्र रोता हुआ आया । सीमा घबरा गयी बोली क्या बात है पुनिया कहां है। राम चन्द्र बोला मालकिन बिटिया की तबियत बहुत खराब है । घर पर दाई प्रसव नहीं करा पा रही पता नहीं वह बच पायेगी या नहीं । सीमा बोली चलो फौरन और चाबी लेकर गाड़ी निकाल उसके घर पहुँची । वहाँ जाकर पुनिया से कहा बिटिया को पकड़ो और गाड़ी में लिटाओ । वह फौरन उसे लेकर अस्पताल पहुँची । डा. से बात करके तुरन्त आप्रेशन रुम में भेजा । पुनिया और उसके पति की आँखों से आंसू नहीं रुक रहे थे । सीमा को अपनी बेटी की याद आगयी कितना तड़फ रही थी वह । थोड़ी देर में डा. बाहर आई तीनों एकदम उनके पास पहुँचे । डा. मुस्कराई बोली खतरे से बाहर है बेटी हुई है।
सब बहुत खुश हुये पुनिया एकदम सीमा के पैरों में झुक गयी । सीमा बोली पुनिया मै तुम्हारे दर्द को महसूस कर रही थी । ईश्वर को धन्यवाद दो । हर कोई पराई पीर को नहीं समझ पाता । मैने कॊई अहसान नहीं किया । ये मेरा फर्ज था ।
स्वरचित
डा.मधु आंधीवाल