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सपना - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सपना

  • 146
  • 3 Min Read

शीर्षक
सपना ...

सपने में फिर मिली थी वह वैसी ही सुन्दर कनक छड़ी सी ।
जैसी बर्षों पहले थी आँखों में लिए हँसी ख्वाब ।
गालो की मोहक गहराई कलाई में थामें दुपट्टे की कोर चुभोने को तैयार नैनों के वाण ।
दूर कंही बहुत दूर शायद गगन के उस
पार से बुला रही थी ।
हाँ तब उसका चेहरा इतना स्याह न था ।

नींद से जगा मैं यादों में उसकी खुद को यकीन दिला रहा था
सुनहरे फ्रेम मेंं जड़ी सामने फोटो में खड़ी थी वह ।

सीमा वर्मा
Email - seema.anjani07@gmail.com

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूबसूरत सुनहरे फ्रेम में जड़ी वह मेरे सामने खड़ी थी।

सीमा वर्मा3 years ago

जी दिल से धन्यवाद नेहा जी 💐💐

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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