कविताअतुकांत कविता
शीर्षक
सपना ...
सपने में फिर मिली थी वह वैसी ही सुन्दर कनक छड़ी सी ।
जैसी बर्षों पहले थी आँखों में लिए हँसी ख्वाब ।
गालो की मोहक गहराई कलाई में थामें दुपट्टे की कोर चुभोने को तैयार नैनों के वाण ।
दूर कंही बहुत दूर शायद गगन के उस
पार से बुला रही थी ।
हाँ तब उसका चेहरा इतना स्याह न था ।
नींद से जगा मैं यादों में उसकी खुद को यकीन दिला रहा था
सुनहरे फ्रेम मेंं जड़ी सामने फोटो में खड़ी थी वह ।
सीमा वर्मा
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बहुत खूबसूरत सुनहरे फ्रेम में जड़ी वह मेरे सामने खड़ी थी।
जी दिल से धन्यवाद नेहा जी 💐💐